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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ੴ ਸੰਲ ਜੀ के कारण मनुष्य - मनुष्य का मांस खाने के लिये विवश हो गया था और एकाकी यात्रियों को पकड़ कर खा जाने के लिये लोगों के दल बन गये - चतुर्दिक खतरों से घिरा हुवा यह चित्र-ण था अकबर के राज्यारोहण के समय का । ऐसे समय में अकबर का भारत में टिक सकना कठिन प्रतीत होता था । अत : ऐसी परिस्थितियों में यह बावश्यक था कि वह जिन्दुओं को अपने पपा मैं करने के लिये उनके प्रति समान व्यवहार, सहिजणुता व उदारता की धार्मिक नीति अपनाये । २. साम्राज्य को सुदृढ बनाने के लिये हिन्दुओं का सहयोग बावश्यक • अकबर इस बारीकी को अच्छी तरह समझ गया था कि भारत - हिन्दुओं का घर है । क्योंकि इतिहास ने यह तथय प्रमाणित कर दिया था कि सुलतानों में वे ही लोग अधिक सफल हुर जिन्होंने हिन्दुओं का सम्योग, समर्थन और सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया । इसके अलावा अकबर का स्वयम् का विचार था कि मुझे इस देश में ईश्वर ने बादशाह ! बना कर भेजा है । यदि केवल विजय प्राप्त करना हो, तब तो यह होगा। कि देश को तलवार के जोर से अपने अधीन कर लिया और देश वासियों को दवा कर उजाड़ डाला, परन्तु जब मैं हसी घर में रहने गं, तब यह सम्भव : नही है कि सारे लाम और सुख तो मैं और मेरे अमीर मोगे और इस देश के निवासी दुर्दशा सहैं, और फिर भी मैं बाराम से रह सकू । देशवासियों को बिलकुल नष्ट और नाम शेण कर देना और भी अधिक कठिन है।" अपने विचारों से अकबर इस निष्कर्ग पहुंचा कि इस्लाम देश का राष्ट्रीय धर्म होने के अनुपयुक्त है, क्योंकि मुसलिम राज्य की बहुसंख्यक जनता • ३ - Akba.renama Vol. II P. 57. ४ अकबरी दरबार - हिन्दी - अनुवाद • रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृ० ११६ For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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