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कर की धार्मिक नीति
इस तरह अकबर ने शासन के प्रत्येक पोत्र में हिन्दू मुसलिम सामन्यस्य स्थापित करने का प्रयास किया । ६. इस्लाम के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास -
एक और तो उकबर ने हिन्दुओं पर लो नेक भूचित प्रतिवन्ध - हटाये बोर हिन्दू मुसलिम एकता स्थापित करने का यथा शक्ति प्रयास • किया किन्तु साथ ही साथ दूसरी बोर वह सत्य धर्म की खोज में गा ही। रहा । वह इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करना। चाहता था । इसके लिये उसने शेख बन्न बी और मखदूम - उल • मूल्य । बडला सुलतानपुरी से विद्वान मुल्लाओं की शर्गिी की । स्व १५७४ तक वह इनके भाव में रहा । इस वर्ण तक वह इस्लाम के नियमों का पालन दृढ़ता से करता रहा । बदायूंनी का भी मत है कि सन १५७५ तक सम्राट अकबर नियमित रूप से नमाज पढ़ता रहा और सलीम चिश्ती से प्रसिद्ध मुसलिम पीरीके मकबरी के दर्शन करने भी कई बार गया । वह अपने युग के प्रसिद्ध मारुविर्या का भी उचित सम्मान करता रहा । अकबर ने शेत बहमद के पुत्र शेख बदुन्नबी को मुख्य पद ( व दान मंत्रि) नियुक्त किया और वह सब १५७८ तक इसी पद पर रहा । सत्र को धाचार दान तथा न्याय विभार्गा का अध्यपा रखा गया । अकवर वधुतन्वी के घर - हदीस ( मुहम्फ साहव के कथन ) पर वातो सुनने जाया करता था । कई बार तो सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के उद्देश्य से अकबर ! ने वनवी के जूते मी स्वयम उठा कर उसके सामने रखे थे । " १८ - पर साडिवावी सुन्नी धर्म उसे पूर्ण सन्तोष नहीं सका था अत: वह शिया की बोर उन्मुख हुवा । उसने शिया र्म के प्रमुख मुल्ला याककी को अपना मित्र बनाया । याजी ने उसे शिया धर्म के सिद्धान्त समकाये
(8P) AL-Badaoni - Vol. II Trans, by W.H.Lowe P. 207.
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