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अकबर
की धार्मिक नीति
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महान पद के लिये योग्य नहीं हो सकता । १५ उसका स्वयम् का भी विश्वास था कि राजा को प्रत्येक धर्म और जाति के प्रति पूर्ण सहिष्णु होना चाहिये । इन्ही विचारों से प्रेरित होकर उसने शासन में उच्च पद पर नियुक्ति करने में हिन्दू मुसलमानों के विमेद को समाप्त कर दिया यहां तक कि मनसबदारों में मी हिन्दू नियुक्त किये गये । एक सहस्त्र सैनिकों के १३७ मनसबदारों ने १४ मनसबदार हिन्दू थे, २०० अश्वारोहियों के ४१५ मनसबदारों में ५१ मनसबदार हिन्दू थे । साम्राज्य के विभिन्न प्रदेशों के १२ दीवानों में ८ दीवान हिन्दू थे । राजा मानसिह स्वयम् सात हजार सैनिकों का मनसबदार था । बदायूंनी खिलता है कि
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हिन्दुओं के मुकदमे फैसले करने के लिये उसने ( अकबर ने ) हिन्दू न्याय -बीश की नियुक्ति की ।" १६, उसका विचार था कि राजा को न्याय प्रिय और निष्पक्ष होना चाहिये । इस लिये इसने बिना किसी पेद भाव के सभी का और सम्प्रदाय के व्यक्तियों के साथ समान न्याय और निष्पक्ष व्यवहार के सिद्धान्त को अपना लिया । हिन्दुओं पर कुरान के नियम और इस्लाम के कानूनों के अनुसार शासन करने की नीति त्याग दी गयी ।
k - हिन्दू मुसलमानों की संस्कृति व कला के आदान प्रदान के प्रयास
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15- Akbe. mama Vol. IT. P. 421
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Al-Badaoni Vol. II P. 376
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अकबर ने मिले जुले विद्यालय और उच्च शिक्षा की ऐसी संस्थाब को प्रोत्साहित किया जहां हिन्दू और मुसलिम दोनों वगा के विभार्थी शिक्षा पा सकते थे। उसने बालकों की शिक्षा के लिये मसजिदों के साथ मकतबों को ( प्राथमिक शालारें ) स्थापित किया । मकतबों के साथ - साथ हिन्दू पाठशालाओं और संस्कृत के विद्यालयों का निर्माण करवाया हसी समय से हिन्दू फारसी का विशेष अध्ययन करने लगे । हिन्दुबौ
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