________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ਕੁਛਦ ਛੀ ਸੰਝ ਜੀਰ
60
सरु थामियों की ही भांति हमारे साथ मिल कर हमारे लिये जान देते हैं, वे सब प्रकार से हमारा पला चाहते हैं और सदा हमारे लिये जान देने की तैयार रहते है । ऐसी दशा में यह को हो सकता है कि हम उन्हें अपना -: विरोधी समझ कर प्रतिष्ठित करें और उनका नाश करें। -- जजिया
ने का प्रमुख कारण था कि पल्ले के साम्राज्यों का प्रबन्ध करने वालों के पास थन बार सांसारिक पदार्थों की कमी रहती थी और वे ऐसे उपार्या से अपनी आय की वृद्धि करते थे । अब राजकोण में हजारों लाखों रुपये पड़े है, पल्कि साज्य का स्क - एक सेवक वार्षिक दृष्टि से वावश्यकता से अधिक सुखी है। फिर विचार शील वीर न्यायी मनुष्य कोड़ी कोड़ी चुनने के लिये वपती निया क्या बिगाड़े । एक कल्पित लाभ के लिये प्रत्थता हानि करना ठीक नहीं बादि - सादि बाते कह कर जजिया रोका - गया ।" १२
इसकी समाप्ति का समाचार जब घर घर पहुचां तो सब लोग अकबर को धन्यवाद देने लगे । जरा सी बात ने लोगों के कि वीर नानी को पौल ले लिया । यदि हजारों बादमियों का रक्त बहाया गाता और - लाखो वामियों को गुलाम बनाया जाता तो भी यह बात नही हो सकती थी । उ फल मिलता है कि" जजिया बंदरगाह का महसूल, यात्री कर बनेक प्रकार के व्यवसायों पर कर, दरोगा की फीस, तहसीलदार की । फीस, बाजार का महसूल, विदेश - यात्रा कर, मकान के क्रय विक्रय का। कर, शोरा पर कर ~. सारांश यह है कि ऐसे तमाम कर जिनको हिन्दुम्तानी लोग सर जिात करते हैं, बन्द कर दिये गये । " १३
१२ - अकबरी परवार हिन्दी अनुवादक- रामचन्द्र वर्मा पहला भाग
पृष्ठ १४४-४५ १३ - Ain-1-Akbari Vol. II. P. 62.
For Private And Personal Use Only