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अकबर की धार्मिक नीति
अकबर ही अलाह है । अकबर के बो विरोधी थे उन्होंने दूसरे व्यं को सही माना और कटटर धर्माध मुसलमानों को अकबर के विरुद्ध भड़कान प्रारम्भ कर दिया । २२ लेकिन अक्बर ने कहा कि वह इमाम - ए .
आदिल है । इस्लामी विधान के अनुसार तो खलीफा और इमाम का पद एक ही व्यक्ति में सम्मिलित होना चाहिये, ए सुल्तानों की योग्यता व निर्बलता के कारण माम का पद उन्नै छोड़ना पड़ा । भारत के बाहर इलामी देशों में राज्य करने वाले सुलतान व्दारा बुतबा पढ़ा जाना कोई नवीन बात नहीं थी, किन्तु भारत में कार धारा जुतबा पढ़ने और इमाम ए आदिल की उपाधि धारण करने से मुसलमानों के बाटर, नुदार व धार्मिक वर्ग में लकी मच गई । रुटटर पंथी मुसलमान समझने लगे कि ! अकबर बतानीय देवी सत्ता का पैगम्बर बनने का प्रयत्म कर रहा है। पर अकबर ने इस विरोध और बारोप की परवाह न की। महजर अथवा बभ्रान्त आज्ञा - पत्र :
सितम्बर १५७६ में फजी और अबुल फजल के पिता से मुबारक ने बादशाह के कहने से महजर पेश किया जिसके व्यारा सारे देश में इस्लाम सम्बन्धि विवादों में अकसर को पंच फसटे का अधिकार दिया गया । इस प्रपत्र को मखदूम - उल - मुल, मुख्य सद्र बब्डन्नवी, काजी काहीन मुलतानी, गाजी ला बदस्ती, सामाज्य के मुफती और प्रधान काजी शेख मुबारक तथा अन्य प्रसिद्ध प्रमुख धार्मिक नेता ने स्वीकार करते हुए उस पर अपने हस्ताक्षर किये । इस प्रपत्र का मूल रुप अधोलिखित है .
" क्योंकि हिन्दुस्तान अब शांति और सुरक्षा का केन्द्र तथा न्याय नीति वा स्थान बन गया है, जिससे उच्च और निम्न वर्ग के लोगों और! मुख्यत : अध्यात्म विया विशारद विद्वान लोग और वे लोग जो ज्ञान -1
22-Akbamama Vol. III P.P. 277-78.
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