Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath
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ह्मणी भमिः क्षत्रियारुणविग्रहा ॥ वैश्या पीततरा ख्याता कष्णा द्राभिधीयते॥५॥ ब्राह्मणी वाह्मणस्योक्ता क्षत्रिया क्षत्रियस्य च ॥ वैश्या वैश्यस्य निर्दिष्टा शूद्रा शूद्रस्य शस्यते ॥६॥ हस्तमात्र खनेत्खातं जलेनैव प्रपूरयेत् ॥ पूरिते वास्तुकर्ता च गच्छेत्पदशतं पुनः ॥७॥ समागत्याम्भसो वृद्धिं दृष्ट्वा वृद्धिरनुत्तमा॥ समे पि स्यान्महावृद्धिं क्षये क्षयमथादिशेत् ॥८॥ अथ ग्रशीनां वासस्थानमाह ॥ कोटो मोनोऽङ्गना कर्कः कार्मको यक क्रियो घटः ॥ आवासे पूर्वतस्त्याज्याः शेषाः सर्वत्र शोभनाः ॥९॥ अथ. ग्रामवासे धारोपधारज्ञानमाह ॥ अक्षरं ।
द्विगुणं कृत्वा मात्रां कृत्वा चतुर्गुणां ॥ ग्रामस्य च तथा पुंसो गणयेन्नामवर्णकम् ॥ १०॥ ससप्तभिश्च हरेद्भागं शेषाद्दाच्यं फलाफलम् ॥ एकशषेण शून्येन चतुभिश्चैव कन्दलम् ॥ ११ ॥
षटकं चापि इयं यत्र प्राप्यते वहशो धनम् ॥ पंचकेन त्रयेणापि न लाभो न च वा क्षतिः ॥१२॥
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00-6HOD-5-169.
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