Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -मह ॥८॥ -0.5SH.ooo * अथ नामराशितो ग्रामराशिविचारः॥ नामभादग्रामराशिः स्याहाङ्गपञ्चेशदिग्मितः ॥ तदैव मुनिभिः प्रोक्तो निवासः शुभदायकः ॥ १३॥ अथ प्रामचक्रविचारः ॥ मस्तके पंच लाभाय मुखे लोणि धनक्षयः॥ कक्षौ पञ्च धनं धान्यं षट पादे स्त्री दरिद्रता ॥ १४॥ कण्ठे चैकं प्राणहानि-17 नाभौ चत्वारि संपदः । गुह्य चैकं भयं पीडा हस्ते चैकन्तु कन्दलम् ॥ १५॥ एकं वामकरे । शोको ग्रामचक्रन्नराकृतिः॥ गणयेन्नामऋक्षान्तं ग्रामनक्षत्रतः सदा ॥ १६ ॥ अथ ग्रामनाम्नोवर्गविचारः ॥ स्ववर्ग द्विगुणी कृत्य परवर्गेण योजयेत् ॥ अष्टाभिश्च हरेद्भागं योऽधिकः सऋणी भवेत् ॥ १७ ॥ अथ वर्गविचारः ॥ अवर्गात्तार्क्ष्यमार्जारसिंहश्वासर्पमूषकाः ॥ गजो मृगश्च में वर्गेशाः स्ववर्गात्पञ्चमो रिपुः ॥१८॥ स्वके स्वके च ते स्थाने सर्वे कल्याणदायकाः ॥ अन्य-1* द्धिताहितं तेषां लौकिकव्यहारतः ॥ १९॥ अथैषां शरभाह ॥ वसुभूतरसावेदा मुनिचन्द्रत्रि ॥८॥ म.एम. Fer Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86