Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्य० । अथ तिथिशुद्धिः॥ पूर्णायां प्राग्मुखं शस्तं नन्दायां दक्षिणाननम् ॥ पश्चिमास्यन्तु भद्रायां, ज-२० ॥९॥ यायामुत्तराननम् ॥ २८ ॥ पूर्णिमातोऽटमों यावत्पूर्वास्य वजयेदगृहम् ॥ उत्तरास्यं न कुर्वीत नवम्यादिचतुर्दशीं ॥ २९॥ अमावास्याष्टमों यावत्पश्चिमास्यं विवर्जयेत् ॥ नवमीतो न याम्यास्यं यावच्छुक्लचतुर्दशीम् ॥ ३० ॥ शुक्लप्रदिपदं ऋक्ता मासान्ताच्च दिनत्रयम् ॥ अवमाद्य गृहारम्भे यत्नतः परिवर्जयेत् ॥ ३१॥ अथ नक्षत्रविचारः ॥ मूलाजपादसंयुक्ते मृदुक्षिप्रचर- वे ॥ वास्तुकर्म शुभं प्रोक्त गृहारम्भन्तथैव च ॥ ३२॥ छेदनं तृणकाष्टानां संग्रहश्च विशेषतः ॥ भूतिकामो न कुर्वीत पट्केन श्रवणादिना ॥ ३३ ॥ अथ ग्रहारम्भे वारविचारः ॥ रखावग्निः, कुजे । नाशः, शशिन्यस्वं, शनौ भयम ॥ सरेज्ये भार्गवे सौम्ये गृहारम्भम्मनोरमम ॥३४॥ अथ योगशुद्धिः॥ वज्रव्याघातयोगेषु व्यतोपातेऽतिगण्डके ॥ विकुम्भे गण्डयोगे च गृहारम्भन्न का -CHHADHSICO-9-1994 to-0-56-CODS-Stos-D ॥९॥ For Private and Personal Use Only

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