Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath
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कराद ॥७२॥ यथा शाखाधिपस्याल वलं प्रोक्तं विचक्षणः ॥ तथा वर्णाधिपस्यापि ब्रतबन्धे ||
विचारयेत् ॥७३॥ सुरासुरगुरू विप्रो, क्षत्रियो रविभूमिजो ॥ वैश्यश्चन्द्रो, बुधः शूद्रः, प्रासन्त्यजातिः शनैश्चरः ॥ ७४॥ अतिविशुद्धिः ॥ हितीयायां तृतीयायां पंचम्या दशमीत्रये ॥
शनिौमदिनं त्यक्त्वा मौंजीबन्धः शुभो भवेत् ॥ ७५॥ अथ नक्षतशुद्धिः॥ तोक्ष्णध्र वमृदुक्षिप्रत्रिपूर्वा सदितिं विना ॥ चरक्षेपि प्रशस्ता स्यादपनोतिर्वटोः किल ॥ ७६ ॥ अथतत्कालिकानध्यायाः ॥ न रातो न च संध्यायां नानध्याये न भिन्नभे ॥ न कृष्णे नापराहे च नाशोचे न गल-* ग्रहे ॥ ७७ ॥ नोपरागे न भद्रायां न प्रदोषादिसंयुते ॥ नाकालवर्षणे चैव गर्जिते नोपनायनम् ॥ ७८ ॥ अथ मलयह-लक्षणम् ॥ अष्टमी सप्तमोविद्धा, त्रयोदश्या चतुर्दशी। द्वितीया प्रतिपहिद्धा, गलग्रह उदाहृतः ॥ ७९ ॥ अथ प्रदोषलक्षणम् ॥ चतुर्थी प्रथमे यामे, सार्द्धयामे च सप्तमी
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