Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7-03 व्यक तथा च कश्यपः ॥ पंचमे ज्ञो रविः षष्ठं वर्तते नवमे गुरुः ।। भाग्ययोगाभिधे योगे निहन्ता वैरिणां सहाः॥७॥ अथ कन्या-16 ॥३६॥ करणं (शकुनम् ) विश्वस्वातीवैष्णवपूर्वात्र यमैत्रै स्वाग्नेयैर्वा करपीडोचितऋक्षः॥ वस्त्रालंकारादिसमेतैः फलपुप्पैः मंतोयादौ स्यादनु कन्यावरणं हि ॥ ८॥ अब वरवरण ( तिलकम् ) ॥ धरणिदेवोथ वा कन्यकासोदरः शुभदिने गीतवाद्यादिभिः सरयुतः॥ वरवृति वस्खयज्ञोपवीतादिना ध्र.वयुतैर्वह्निपूर्बात्रयैराचरेत् ॥ ९॥ पूर्वात्रितयमाने यमुत्तरात्रितयं । तथा। रोहिणी तत्र वरणभगणः शस्यते सदा ॥१०॥ उपवीतं फलं पुष्पं वासांसि विविधानि च । देयं वराग वरणे कन्याभूला द्विजेन वा ॥११॥ चहलोस्थापनम् ॥ तुरगयमविशाखाब्राह्मथसौम्योत्तरेषु ज्वलनजलधनिष्ठामूलशूलायधेषु ॥ रविशनिकुजवारे चुडिका स्थापनीया ज्वलनशुचितधोरव्यञ्ज स्वादुकों ॥ १२ ॥ अथ सप्तसकारयोगो वास्तुकर्मणि ॥ शनिः स्वातो हरिल्लग्नः श्रावणः शुक्लपक्षकः। सप्तमो शुभयोगश्च बामे सर्वार्थसिद्धिदः ॥१३॥ श्रीपंचम्याः शकुनॐ भाषया ॥ सिंहाटार माण्डाटार भल नदि होय गिर नौ फार ॥ बडदा मतै खेत दहाय मरै बैल जो बैल पडाय ॥ १४ ॥ नास नसे तो नसे किसान लदहा टूटे हो मन हान ॥ कुर्द लादे बोले सोइ कहै डाक घर लछमी होइ ।। १२ ॥ इति शम्॥ S. S. J. Stock-6-11to5.11.2-1 -2016 ॥३६॥ ---- - .51 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86