Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य० ॥१७॥
-cbf O
SEDNEPHO-CD-8-
व्युत्तराप्यादी रोहिणी भरणी तथा। मनुष्याख्यो गणः प्रोक्तो ज्योतिशास्त्रविशारदैः ॥ १० ॥ मघा श्लेषा विशाखा च कृतिका शततारकाः । चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा च मूलं रक्षोगणः स्मृतः ॥११॥ स्ववग्गें परमा प्रोतिर्मयमा देवमर्त्ययोः॥ मर्त्यराक्षसयो मृत्युः कलहो देवरक्षसोः ॥ १२ ॥ अथ वर्णविचारः॥ झपालिकर्कटा विप्राः क्षत्री मेषोहरि ई नुः। वृषः कन्या मृगो वैश्यः शूद्रो युग्मं तुला घटः ॥ १३ ॥ वरस्य वर्णतः कन्या नाधिका शुभदा स्मृता ॥ समा च मयमा ज्ञेया नीचवर्णा सदा शभा ॥१२॥ अयोनिबिचारः ॥ अश्विनी शततारा च वाजियोनिः स्म भरणी पोष्णो गजयोनिविधीयते ॥ १५ ॥ पुष्यः कृशानुइछागायो नागाख्यौ रोहिणीमृगौ आर्द्रामूलमपि इवानो मूषकः फारगुती मघा॥ १६ ॥ मार्यारो दितिरश्लेषा गोजातिरुत्तरात्रयम् लुलायो ।
*लुलायो महिषावित्यर्थः ( लुलायो महिषो वाइविकासरमैरिभा ) इत्यमरकोपोक्तः ॥ S. S. J.
01
ffro-bio-७ Aal
॥१७॥
-00-604
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86