Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath
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रयेत् ॥ ३५॥ अथ सम्मुखराहुविचारः ॥ त्रिभिस्त्रिभिश्च मार्गाद्य राहुस्तिष्ठति पूर्वतः ॥ विपरीतक्रमेणैव हारं सम्मुखतस्त्यजेत् ॥ ३६॥ अन्यवेस्मस्थित दारु नैवान्यस्मिन् प्रयोजयेत् ॥ न तत्र वसते कर्ता वसन्नपि न जीवनम् ॥ ३७॥ नूतने नतनं काष्टं जीणे जीर्ण प्रशस्यते ॥ न जीणे नूतनं श्रेष्ठं नो जीर्णं नूतने तथा ॥३८॥ हारस्य सम्मुखे द्वारं हार हारोपरिस्थितम् ॥
नैव कुर्याद्धनाकांक्षी पुत्राकांक्षी विशेषतः ॥३९॥ अथ गृहे शिल्पादिक्रियाविचारः ॥ ध्रुवे । हैं. मैत्रे चरे क्षिप्रे जीवे सौम्ये खलग्नगे॥ चन्द्र गुरुज्ञवर्गस्थे शिल्पारम्भः प्रशस्यते ॥ १० ॥ उलू
ककाकगृद्धाश्च व्याघ-सिंहवराहकाः॥ पिशाचा राक्षसाः ऋराः संग्राम रोदनं तथा ॥ ११॥ इ-la न्द्रजालवदन्यानि प्रपंचरितानि च ॥ भोषणानि च सर्वाणि गृहचित्रे विवर्जयेत् ॥ १२॥ अथ गृहकरणार्थ वास्तविचारः ॥ यदुक्त भवनारम्भे शुभं वाप्यशभं बुधैः ॥ तदेव तिथिमासाद्य
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