Book Title: Vyavahar Ratnam
Author(s): Bhanunath
Publisher: Bhanunath

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्य० ॥७॥ SM-09 09 PHP www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Bestha तथैव च ॥ ६८ ॥ हिसूर्ये वा त्रिसूय्यै वा छिद्रेणापि च संयुते ॥ रात्रौ धनुषि शाक े च कईमस्यापि वर्षणे ॥ ६९ ॥ केतूद्गमः शोणितवर्षणञ्च धराप्रकम्पः करकानिपातः ॥ उल्काशनीनां पत्तनं यदा स्यात्तदा निषिद्धानि दिनानि सप्त ॥ ७० ॥ इति संक्षेपतः प्रोक्तमुपदेशाभिधं मया ॥ ( श्रेष्ठप्रकरणं यस्मादनेन ज्ञानमुत्तमम् ॥ ७१ ॥ इति मैथिलीभानुनाथ दैवज्ञविरिचिते व्यवहार- | | रत्न उपदेशप्रकरणम् ॥ १ ॥ ॥ * ॥ सर्वाश्रमाणान्नितराम्वलीयान् गृहाश्रमः प्राङ्म निभिः प्रदिष्टः तस्मादहं वच्मि गृह क्रियाया विधानमादौ व्यवहारयोग्यम् ॥ १ ॥ अथ वास्तुभूमिज्ञानमाह ॥ पूवोंत्तरप्लवा भूमिः सुप्रसन्ना समापि च ॥ ईशप्लवा निरुच्छिष्टा प्रशस्ता वासकम्मणि ॥ २ ॥ दक्षिणापरनीचाभूः सोषरा विषमापि वा वृक्षछायासमायुक्ता वर्जनीया प्रयत्नतः ॥ ३ ॥ उक्तादन्यस्व - | रूपा तु निषिद्धविहितेतरा ॥ तस्यामपि वसेच्छान्त्याथ वा देवद्विजाज्ञया ॥ ४ ॥ श्वेताच त्रा (GVA) EI.8 60 5361 २० ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86