Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 438
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-२ // 960 // आला. भा० दाहिणपुरच्छिमेणं उत्तरपुरच्छिमेणं दो आला. भा० एवं चेव जाव तदा णं उत्तरपञ्चच्छिमे णं चंदे उवदंसेति दाहिणपुरच्छिमेणं राहू, जदाणं राहू आग० वा ग० विउव्वमाणे परियारेमाणे चंदलेस्सं आवरेमाणे 2 चिट्ठति तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति- एवं खलु राहू चंदं गे• एवं०, जदा णं राहू आगच्छमाणे 4 चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पासेणं वीइवयइ तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति- एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना एवं०, जदाणं राहू आगच्छमाणे वा 4 चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पच्चोसक्कइ तदाणं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति- एवं खलु राहुणा चंदे वंते, एवं०, जदाणं राहू आगच्छमाणे वा 4 जाव परियारेमाणे वाचंदलेस्सं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं आवरेत्ताणं चिट्ठति तदाणं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति- एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे एवं०२ ॥२कतिविहे णं भंते! राहू प०? गोयमा! दुविहे राहू प०?, तंजहा- धुवराहू पव्वराहू य, तत्थ णंजे से धुवराहू से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए (ग्रन्थाग्रम् 8000) पन्नरसतिभागेणंपन्नरसइभागचंदस्स लेस्सं आवरेमाणे 2 चिट्ठति, तंजहा- पढमाए पढमभागं बितियाए बितियं भागंजाव पन्नरसेसु पन्नरसमभाग, चरिमसमये चंदे रत्ते भवति अवसेसे समये चंदेरत्ते य विरत्ते य भवति, तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे उव० 2 चिट्ठति पढमाए पढमं भागंजाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं, चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ अवसेसे समये चंदे रत्ते यविरत्ते य भवइ, तत्थ णंजे से पव्वराहू से जहन्नेणं छण्हं मासाणं उक्कोसेणंबायालीसाए मासाणं चंदस्स अडयालीसाए संवच्छराणं सूरस्स ॥सूत्रम् 453 // 1 रायगिह इत्यादि, मिच्छंते एवमाहंसु त्ति, इह तद्वचनमिथ्यात्वमप्रमाणकत्वात् कुप्रवचनसंस्कारोपनीतत्वाच्च, ग्रहणं हि राहुचन्द्रयोर्विमानापेक्षम्, न च विमानयोासकग्रसनीय सम्भवोऽस्ति आश्रयमात्रत्वान्नरभवनानामिव, अथेदं गृहमनेन ग्रस्तमिति दृष्टस्तद्व्यवहारः?,सत्यम्, सखल्वाच्छाद्याच्छादकभावेसति नान्यथा, आच्छादनभावेनच ग्रासविवक्षायामिहापि |12 शतके उद्देशकः६ | राहधिकारः। सूत्रम् 453 | राहोश्चन्द्रग्रसनंतद्देवनामविमानप्रकाशाऽऽवरण तत्प्रकारादिप्रश्रा:। राहोः सूर्यचन्द्रावरणकालप्रश्नाः। // 960 //

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