Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 550
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1072 // 12 देवे णं भंते! महिड्डीए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू तिरियपव्वयं वा तिरियभित्तिं वा उल्लंघेत्तए वा पल्लंघेत्तए वा?, गोयमा! णो तिणढे समढे / 13 देवे णं भंते! महिड्डिए जाव महेसक्खे बा० पो० परियाइत्ता पभू तिरिय० जाव पल्लंघेत्तए वा?,हंता पभू / सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 517 // 14-5 // 12 देवे ण मित्यादि, बाहिरए त्ति भवधारणीयशरीरव्यतिरिक्तान, अपरियाइत्त त्ति, अपर्यादाय, अगृहीत्वा, तिरियपव्वयं त्ति तिरश्चीनं पर्वतं गच्छतो मार्गावरोधकम्, तिरियं भित्तिं वत्ति तिर्यग्भित्तिं तिरश्चीनां प्राकारवरण्डिकादिभित्तिं पर्वतखण्डं वेति, उल्लंघेत्तए त्ति सकृदुल्लङ्घने, पल्लंघेत्तए व त्ति पुनः पुनर्लङ्घनेनेति // 517 // चतुर्दशशते पञ्चमः॥१४-५॥ १४शतक उद्देशक:५ अग्न्यधिकारः। सूत्रम५१५ महद्धिकादि देवस्य बाह्यपुदलगृहीत्वागृहीत्वाल्लघनादिसामर्थ्यप्रश्राः / उद्दशक:६ किमाहाराधिकारः। सूत्रम् 518 नारकादिनामाहारपरिणामयोनिस्थित्यादि प्रश्ना : / सूत्रम् 519. नारकादिना वीच्यवीचिद्रव्याहारप्रश्नाः / // 1072 // ॥चतुर्दशशतके षष्ठोद्देशकः॥ पञ्चमोद्देशके नारकादिजीववक्तव्यतोक्ता षष्ठेऽपि सैवोच्यत इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रम् १रायगिहे जाव एवं व०- नेरइया णं भंते! किमाहारा किं परिणामा किंजोणीया किंठितीया प०?, गोयमा! ने० णं पोग्गलाहारा पो परि० पो जो० पो ट्ठि० कम्मोवगा कम्मनियाणा कम्मट्टितीया कम्मुणामेव विप्परियासमेंति एवं जाव वे०॥सूत्रम् 518 // 2 नेरइया णं भंते! किं वीयीदव्वाइं आहारेंति अवीचिदव्वाइं आ०?, गोयमा! ने वीचिदव्वाइंपि आहारेंति अवीचिदव्वाइंपि आ०, सेकेण० भंते! एवं वु० ने वीचितं चेव जाव आ०?, गोयमा! जेणं ने एगपएसूणाइंपिदव्वाइं आ० ते णं ने वीचिदव्वाई आ०, जेणं ने पडिपुन्नाइंदव्वाइं आ० ते णं ने वीचिदव्वाइं आ०, से तेण गोयमा! एवं वु० जाव आ०, एवं जाव वे० आ० // सूत्रम् 519 //

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