Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1074 // ३जाहेणं भंते! सक्के देविंदे देवराया दिव्वाई भोगभोगाई जिउंकामे भवति से कहमियाणिं पकरेंति?, गोयमा! ताहे चेवणं (ग्रंथाग्रम् 9000) सेसक्के 3 एगंमहं नेमिपडिरूवगंविउव्वति एगंजोयणसयसहस्संआयामि(मवि)क्खंभेणं तिन्निजोयणसयसहस्साई जाव अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, तस्स णं नेमिपडिरूव(ग)स्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे प० जाव मणीणं फासे, तस्सणं नेमिपडि बहुमज्झदेसभागे तत्थणं महंएगंपासायवडेंसगं वि० पंच जोयणसयाइंउडे उच्चत्तेणं अड्डाइजाइंजोयणसयाई विक्खंभेणं 0 अब्भूग्गयमूसियवन्नओ जाव पडिरूवं, तस्स पासायव उल्लोए पउमलय(या)भत्तिचित्ते जाव पडिरूवे, तस्स णं पासायव० अंतो बहुसमरम० भूमिभागे जाव मणीणं फासो मणिपेढिया अट्ठजोयणिया जहा वे०, तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं महं एगे देवसयणिज्जे वि० सयणिज्जवन्नओजावपडिरूवे, तत्थ णं से सक्के 3 अट्ठहिं अग्गमहि० सपरिवाराहिं दोहि य अणिएहिं नट्टाणिएण य गंधव्वाणिएण यसद्धिं महयाहयनट्टजाव दि० भोगभोगाइं भुंजमाणे वि०॥४ जाहे ईसाणे 3 दिव्वाईजहा सक्के तहाईसाणेवि निरवसेसं, एवं सणंकुमारेवि, नवरं पासायवडेंसओ छ जोयणसयाई उडे उच्चत्तेणं, तिन्नि जोयणसयाई वि० मणिपे तहेव अट्ठजोयणिया, तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एत्थ णं महेगं सीहासणं वि० सपरिवारं भा०, तत्थ णं सणंकुमारे 3 बावत्तरीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव चउहिं बावत्तीरीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि य बहूहिं सणंकुमारकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि यसद्धिं संपरिवुडे महया जाव वि० / एवं जहा सणंकुमारे तहा जाव पाणओ अचुओ नवरंजो जस्स परिवारो सो तस्स भा०, पासायउच्चत्तंजसएसुरकप्पेसु विमाणाणंउ० अद्धद्धं वित्थारोजाव अचुयस्स नवजोयणसयाइंउटुंउच्चत्तेणं अद्धपंचमाइंजोयणसयाई विक्खं०, तत्थणंगोयमा! अच्चुए 3 दसहिंसामाणियसाहस्सीहिंजाव विहरइ सेसंतंचेव सेवं भंते! २त्ति॥सूत्रम् 520 // 14-6 // 3 जाहे ण मित्यादि, जाहे त्ति यदा भोगभोगाई ति भुज्यन्त इति भोगाः स्पर्शादयः, भोगार्हा भोगा भोगभोगाः, मनोज्ञ 14 शतके उद्देशकः६ किमाहाराधिकारः। सूत्रम् 520 भोगंभोक्तुकामानां शक्रेशानादीनां नेमिविकुर्वणं प्रासादशय्यास्वरूपादिप्रश्राः / // 1074 //
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