Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 567
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1089 // पच्छा खिप्पामेव पडिसंघाएजा नोचेवणं तस्स पुरि० किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएजा छविच्छेदं पुण करेति, एसुहमंचणं प०॥सूत्रम् 532 // 19 अत्थिणंभंते! जंभया देवा जं०२?, हंता अस्थि से केणटेणं भंते! एवं वु जंभया देवा जं०२?, गोयमा! जंभगाणं देवा निच्चं पमुइयपक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला जन्नं ते देवे कुद्धे पासेज्जा से णं पुरिसे महंतं अयसंपाउणिज्जा जेणं ते देवे तुट्टे पासेज्जा से णं महतं जसं पाउणेज्जा, सेतेणटेणं गोयमा! जंभगा देवा 2 // 20 कतिविहाणं भंते! जं. देवाप०?,गोयमा! दसविहाप०, तंजहाअन्नजंभगा पाणवत्थजं. लेण० सयणजं० पुप्फजं० फलजं० पुप्फफलजं. विजा० अवियत्तजं०,२१ जंभगाणं भंते! देवा कहि वसहि उवेंति?,गोयमा! सव्वेसुचेव दीहवेयड्डेसु चित्तविचित्तजमगपव्वएसुकंचणपव्वएसुय एत्थ णं जं. देवा वसहिं उ०। 22 जंभगाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती प०?, गोयमा! एगं पलिओवमं ठिती प० / सेवं भंते! रत्ति जाव विहरति // सूत्रम् 533 // 14-8 // 17 तत्र चाव्वाबाह त्ति व्याबाधन्ते परंपीडयन्तीति व्याबाधास्तनिषेधादव्याबाधाः, तेच लोकान्तिदेवमध्यगता द्रष्टव्याः, यदाह सारस्सयमाइचा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य॥१॥ इति (सारस्वता आदित्या वह्नयो वरुणाश्च गर्दतोयाश्च तुषिता अव्याबाधा अग्न्यश्चैिव रिष्ठाश्च // ) अच्छिपत्तंसि, अक्षिपत्रेऽक्षिपक्ष्मणि, आबाहं वत्ति, ईषद्बाधाम्, पबाहं व त्ति प्रकृष्टबाधाम्, वाबाहं ति क्वचित्, तत्र तु व्याबाधां विशिष्टामाबाधां छविच्छेयं ति शरीरच्छेदम्, / ति शरारच्छदम् एसुहुमंचणं ति, इति सूक्ष्ममेवं सूक्ष्मं यथा भवत्येवमुपदर्शयेन्नाट्यविधिमिति प्रकृतम् // 531 // 0श्रीतत्त्वार्थसूत्रे (अ०४ सू०२६) 'वरुण' स्थाने 'अरुण', 'अग्न्यर्चा' स्थाने 'मरुत्' इति वर्तते। |14 शतके उद्देशक:८ नरकपृथिव्यन्तराधिकारः। सूत्रम् 531 अव्याबाधदेव प्रश्नः / सूत्रम् 532 इन्द्रस्यमस्तकछेदनप्रतिसन्धानसामर्थ्य प्रश्नः। सूत्रम् 533 मुंभकदेवाभिधानहेतुतत्प्रकारनिवासस्थित्यादि प्रश्नाः / // 1089 //

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