Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 565
________________ | श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1087 // |14 शतके | उद्देशकः८ नरकपृथिव्यन्तराधिकारः। | सूत्रम् |529-530 अम्बड़परिव्राजकसप्तशतशिष्यदृढप्रतिज्ञेत्यादि प्रश्नाः / नगरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति, सा णं तत्थ अच्चियवंदियपूइय जाव लाउल्लोइयमहिए यावि भवि०, से णं भंते! तओ० अणंतरं उव्वट्टित्ता सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिति! 14 एस णं भंते! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया 3 कालमासे कालं किच्चा जाव कहिं उव०?,सामलिरु० पच्चा०, साणं तत्थ अ०व०पू० जाव लाउल्लोइयमहिए याविभ०, इहेव जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे पाडलिपुत्ते नामं नगरे पाडलिरु० पच्चा०, सेणंतत्थ अच्चियवंदिय जाव भ०, सेणंभंते! अणंतरं उव्वत्ति(ट्टि)त्ता सेसंतंचेव जाव अंतं काहिति ॥सूत्रम् 528 // 12 एस ण मित्यादि, दिव्वे त्ति प्रधानः, सच्चोवाए त्ति सत्यावपातः सफलसेवः, कस्मादेवमित्यत आह सन्निहियपाडिहेरे त्ति संनिहितं विहितं प्रातिहार्य प्रतीहारकर्म सांनिध्यं देवेन यस्य स तथा। 13 साललट्ठिय त्ति शालयष्टिका, इह च यद्यपि शालवृक्षादावनेके जीवा भवन्ति तथाऽपि प्रथमजीवापेक्षं सूत्रत्रयमभिनेतव्यम् / एवंविधप्रश्नाश्च वनस्पतीनां जीवत्वमश्रद्दधानं श्रोतारमपेक्ष्य भगवता गौतमेन कृता इत्यवसेयमिति // 528 ॥गतिप्रक्रमादिदमाह 15 तेणं कालेणं 2 अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासीसया गिम्हकालसमयंसि एवं जहा उवावाइए जाव आराहगा। सूत्रम् 529 // 16 बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए एवं जहा उववाइए (पद९६) अम्मडस्स वत्तव्वया जाव दडप्पइण्णो अंतं काहिति॥सूत्रम् 530 // 0प्रत्यासत्तेः सप्तमोद्देशकवक्तव्यतास्थानं यद्राजगृहं चैत्यं गुणशीलकं पृथ्वीशिलापट्टकश्च तत्रत्या वृक्षा एते समवसेयाः / अन्येष्वनेकेषु जीवेषु सत्स्वपि समस्तावयवव्याप्येकोऽस्ति वृक्षजीव इति सूत्र० आहारपरिज्ञाध्ययने / // 1087 //

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