Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यता श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1085 // ॥चतुर्दशशतकेऽष्टमोद्देशकः॥ सप्तमे तुल्यतारूपो वस्तुनो धर्मोऽभिहितः, अष्टमे त्वन्तररूपः स एवाभिधीयत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् १इमीसेणंभंते! रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए य पुढवीए केवतियं अबाहाए अंतरेप०?, गोयमा! असंखेन्जाइंजोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे प०, 2 सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए वालुयप्पभाए य पु. के. एवं चेव, एवं जाव तमाए अहेसत्तमाए य, 3 अहेसत्तमाएणं भंते! पु० अलोगस्सय के० आबाहाए अंतरे प०?, गोयमा! असंखेज्जाइंजोयणसहस्साई आ(अ)बाहाए अं० प० / 4 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० जोतिसस्स य के० पुच्छा, गोयमा! सत्तनउए जोयणसए आबाहाए अंतरे प०,५ जोतिसस्सणं भंते! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं के० पु०, गोयमा! असंखेन्जाइंजोयण जाव अंतरेप०,६ सोहम्मीसाणाणंभंते! सणंकुमारमाहिंदाण य के० एवं चेव, 7 सणंकुमारमाहिंदाणं भंते! बंभलोगस्स क य के० एवं चेव, 8 बंभलोगस्स णं भंते! लंतगस्स य क० के० एवं चेव, 9 लंतयस्स णं भंते! महासुक्कस्स य क० के० एवं चेव, एवं महासुक्कस्स क. सहस्सारस्स य, एवं सहस्सारस्स आणय पाणयकप्पाणं, एवं आणयपाणयाण य कप्पाणं आरणचुयाण य कप्पाणं, एवं आरणच्चुयाणं गेविजविमाणाण य, एवं गेविजविमाणाणं अणुत्तरविमाणाण य / 10 अणुत्तरविमाणाणं भंते! ईसिंपन्भाराए य पु० के० पुच्छा, गोयमा! दुवालसजोयणे अ० अं० प०, 11 ईसिंपन्भाराएणं भंते! पु० अलोगस्स य के० अबाहाए पु०, गोयमा! देसूणं जोयणं अबाहाए अंतरे प० ।सूत्रम् 527 // 1 इमीसे ण मित्यादि, अबाहाए अंतरे त्ति बाधा परस्परसंश्लेषतः पीडनम्, न बाधाऽबाधा तयाऽबाधया यदन्तरं व्यवधानमित्यर्थः, इहान्तरशब्दो मध्यविशेषादिष्वर्थेषु वर्तमानो दृष्टस्ततस्तद्व्यवच्छेदेन व्यवधानार्थपरिग्रहार्थमबाधाग्रहणम्, असंखेजाई |14 शतके उद्देशकः 8 नरकपृथिव्यन्तराधिकारः। सूत्रम् 527 रत्नप्रभायावत्सप्तमनरकालोकस्य, रत्नप्रभाजोतिष्कयावनुत्तरेषत्प्रारभारापृथिव्यलोकस्य च परस्परान्तर प्रश्ना : / // 1085 //
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