Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1083 // त्ति, अध्युपपन्न अप्राप्ताहारचिन्तामाधिक्येनोपपन्नः आहारंवायुतैलाभ्यङ्गादिकमोदनादिकंवाऽभ्यवहार्य तीव्रक्षुद्वेदनीयकर्मो | 14 शतके दयादसमाधौ सति तदुपशमनाय प्रयुक्तमाहारयत्युपभुङ्क्ते, अहे णं ति, अथाहारानन्तरं विश्रसया स्वभावत एव कालं ति उद्देशक: 7 संश्लिष्टशब्दोकालो मरणं काल इव कालो मारणान्तिकसमुद्धातस्तं करोति याति तओ पच्छ त्ति ततो मारणान्तिकसमुद्धातात् / पलक्षिता धिकारः। पश्चात्तस्मान्निवृत्त इत्यर्थः, अमूर्च्छितादिविशेषणविशेषित आहारमाहारयति प्रशान्तपरिणामसद्भावादिति प्रश्नः, अत्रोत्तरम्, सूत्रम् हंता गोयमा! इत्यादि,अनेन तु प्रश्नार्थ एवाभ्युपगतः, कस्यापि भक्तप्रत्याख्यातुरेवंभूतभावस्य सद्भावादिति // 524 // अनन्तरं 525-526 लवसप्तमानुभक्तप्रत्याख्यातुरनगारस्य वक्तव्यतोक्ता, स च कश्चिदनुत्तरसुरेषूत्पद्यत इति तद्वक्तव्यतामाह त्तरौपपातिक११ अत्थि णं भंते! लवसत्तमा देवा ल० 2?, हंता अत्थि, से केणटेणं भंते! एवं वु. लवसत्तमा देवा ल०२?, गोयमा! से देवानां तद भिधानहेतु जहानामए- केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा वीहीण वा गोधूमाण वा जवाण वा जवजवाण वा पक्काणं षष्ठभक्तकर्मपरियाताणं हरियाणं हरियकंडाणं तिक्खेणंणवपजणएणं असिअएणं पडिसाहरिया 2 पडिसंखिविया 2 जाव इणामेव 2 त्तिकट्ट शेष प्रश्नाः / सत्तलवए लुएन्जा, जति णं गोयमा! तेसिं देवाणं एवतियं कालं आउए पहुप्पते तोणं ते देवा तेणंचेव भवग्गहणेणं सिझंता जाव अंतं करेंता, से तेण. जाव ल. देवा ल०२॥ सूत्रम् 525 // 12 अत्थिणं भंते! अणुत्तरोववाइया देवा अ० 2?, हंता अस्थि, से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ अ० 2?, गोयमा! अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सद्दा जाव अणुत्तरा फासा, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव अणुत्तरोववाइया देवा अ०२।अणुत्तरोववाइयाणं // 1083 // भंते ! देवाणं केवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववन्ना?, गोयमा! जावतियं छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइया देवा देवत्ताए उववन्ना / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 526 // 14-7 //
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