Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 483
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 1005 // तेषु यथा चउसट्ठी असुराणं नागकुमाराण होइ चुलसीई। बावत्तरि कणगाणं वाउकुमाराण छन्नउई॥१॥ दीवदिसाउदहीण 13 शतके विज्जुकुमारिंदथणियमग्गीणं / जुयलाणं पत्तेयं छावत्तरिमो सयसहस्सा॥२॥इति॥व्यन्तरसूत्रे संखेज्जवित्थडत्ति, इह गाथा जंबुद्दीवसमा / उद्देशक:२ देवाधिकारः। खलु उक्कोसेणं हवंति ते नगरा। खुड्डा खेत्तसमा खलु विदेहसमगा उ मज्झिमगा॥१॥ इति // ज्योतिष्कसूत्रे सङ्ख्यातविस्तृता सूत्रम् 473 विमानवासाः एगसट्ठिभागकाऊण जोयण मित्यादिना ग्रन्थेन प्रमातव्याः 8 नवरं एगा तेउलेस्स त्ति व्यन्तरेषु लेश्याचतुष्टयमुक्तमेतेषु चतुर्निकाय देवभेदप्रभेद तु तेजोलेश्यैवैका वाच्या, तथा, उववजंतेसु पन्नत्तेसु य असन्नी नत्थि त्ति व्यन्तरेष्वसजिन उत्पद्यन्त इत्युक्तमिह तु तनिषेधः, प्रत्येकानामाप्रज्ञप्तेष्वपीह तन्निषेध उत्पादाभावादिति // 10 सौधर्मसूत्रे ओहिनाणी ततश्च्युता यतस्तीर्थकरादयो भवन्त्यतोऽवधिज्ञानादय वासैकसमये उत्पादोद्वर्तना च्यावयितव्याः, ओहिनाणी ओहिदसणी य संखेज्जा चयंति त्ति सङ्ख्यातानामेव तीर्थकरादित्वेनोत्पादादिति / छ गमग त्ति, सम्यग्दृष्ट्याउत्पादादयस्त्रयः सङ्ख्यातविस्तृतानाश्रित्य, अत एव च त्रयोऽसङ्ख्यातविस्तृतानाश्रित्य, एवं षड् गमाः, नवरं इत्थिवेयगे। दीनामुत्पादत्यादि, स्त्रियः सनत्कुमारादिषु नोत्पद्यन्ते न च सन्त्युद्वृत्तौ तु स्युः, असन्नी तिसुवि गमएसु न भन्नइ त्ति सनत्कुमारादिदेवानां लेश्यावान्सज्ञिभ्य एवोत्पादेन च्युतानां च सजिष्वेव गमनेन गमत्रयेष्वसज्ञित्वस्याभावादिति / एवं जाव सहस्सारे त्ति सहस्रारान्तेषु भूत्वादि प्रश्नाः / तिरश्चामुत्पादेनासङ्ख्यातानां त्रिष्वपि गमेषु भावादिति / णाणत्तं विमाणेसु लेसासु यत्ति तत्र विमानेषु नानात्वं बत्तीसअट्ठवीसे त्यादिना ग्रन्थेन समवसेयम्, लेश्यासु पुनरिदम्, तेऊ 1 तेऊ 2 तहा तेउ पम्ह 3 पम्हा 4 य पम्हसुक्का य 5 / सुक्का य 6 परमसुक्का Oअसुराणां चतुःषष्टि गकुमाराणां चतुरशीतिर्भवन्ति द्वासप्ततिः कनकानां षण्णवतिर्वायुकुमाराणाम् // 1 // द्वीपदिगुदधिविद्युत्कुमारेन्द्रस्तनिताप्नीनां युगलानां प्रत्येकं षट्सप्ततिर्लक्षाः॥२॥उत्कृष्टेन जम्बूद्वीपसमानि तानि नगराणि भरतसमानि क्षुल्लानि विदेहसमानि मध्यमानि // 1 // 0 तेजः 1 तेजः 2 तथा तेजः 3 पद्मा च 4 पद्यशुक्ला च 5 शुक्ला च 6 परमशुक्ला, // 1005 //

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