Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 493
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयः वृत्तियुतम् भाग-२ // 1015 // किं प्रवर्त्तते? इति प्रश्नः, उत्तरं तु प्रतीतार्थमेवेति // 18 पोग्गलत्थिकाएण मित्यादि, इहौदारिकादिशरीराणां श्रोत्रेन्द्रियादीनां मनोयोगान्तानामानप्राणानांच ग्रहणं प्रवर्त्तत इति वाक्यार्थः, पुद्गलमयत्वादौदारिकादीनामिति // ४८१॥अस्तिकायप्रदेशस्पर्शद्वारे १९एगे भंते! धम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! जहन्नपदे तिहिं उक्कोसपदे छहिं / केवतिएहिं अहम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! जहन्नपए चउहिं उक्कोसपए सत्तहिं / के० आगासत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! सत्तहिं। के. जीवत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! अणंतेहिं / के० पोग्गलत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! अणंतेहिं / के० अद्धासमएहिं पुढे?, सिय पुढे सिय नोपुढे, जइ पुढे नियम अणंतेहिं / / 20 एगे भंते! अहम्मत्थिकायपएसे के० धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! जहन्नपए चउहिं उक्कोसपए सत्तहिं / के० अहम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, ज. तिहिं उ० छहिं सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स॥ 21 एगे भंते!आगासत्थिकायपएसे के० धम्मात्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा! सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे ज० एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा उ० सत्तहिं, एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिवि। के० आगासत्थिकाय.? छहिं, के. जीवत्थिकायपएसेहिं पुढे?, सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे नियमं अणंतेहिं / एवं पोग्गलत्थिकायपएसेहिवि अद्धासमएहिवि / / सूत्रम् 482 // 22 एगे भंते! जीवत्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थि० पुच्छा जहन्नपदे चउहि उक्कोसपए सत्तहिं, एवं अहम्मत्थिकायपएसेहिवि। के० आगासत्थि०?, सत्तहिं / केवतिएहिं जीवत्थि०?, 23 सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स // एगे भंते! पोग्गलत्थिकायपएसे के० धम्मत्थिकायपए०? एवं जहेव जीवत्थिकायस्स // 24 दो भंते! पोग्गलत्थिकायप्पएसा के० धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा?, जहन्नपए छहिं उक्कोसपए बारसहिं, एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिवि।के० आगासत्थिकाय.?, बारसहिं, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स / / 25 13 शतके उद्देशक:४ नरकपृथिव्यधिकारः। सूत्रम् 482 8. अस्तिकाबप्रदेशस्पर्शना द्वारम्। धर्माधर्माऽऽकाशैकप्रदेशस्य धर्मादीनामेकादिप्रदेशः सह स्पर्शनाप्रश्रा:। सूत्रम् 483 जीवैकप्रदेश पुद्गलैकयादिसड्यातासहयातानन्तप्रदेशानां धर्मादिभिः कालेकसमयस्यधर्मादिभिश्वसहस्पर्शनाप्रश्रा:। // 1015 //

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