Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 535
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1057 // 4 अस्थि णं भंते! पज्जन्ने कालवासी वुट्टिकायं पकरें(रे)ति?, हंता अस्थि // 5 जाहे णं भंते! सक्के देविंदे देवराया वुट्टिकायं काउकामे भवति से कहमियाणिं पकरेति?,गोयमा! ताहे चेवणं से सक्के 3 अन्भिंतरपरिसए देवे सद्दावेति, तएणं ते अ०परिसगा देवा सद्दाविया समाणा मज्झिमपरिसए देवे सद्दावेंति, तए णं ते म०परिसगा देवा स० स० बाहिरपरिसए देवे सद्दावेंति, तएणं ते बा परिसगा देवा स.स. बाहिरं बाहिरगा देवा सद्दावेंति, तएणं ते बाहिरगा देवा स० स० आभिओगिए देवे सद्दावेंति, तएणं ते जाव स. स. वुट्ठिकाए देवे सद्दावेंति, तए णं ते वुट्टिकाइया देवा स० स० वुट्टिकायं पकरेंति, एवं खलु गोयमा! सक्के 3 वुट्टि पक०॥६ अस्थि णं भंते! असुरकुमारावि देवा वुट्टि पक०?, हंता अस्थि, किं पत्तियन्नं भंते! असुरकुमारा देवा वुट्टि पक०?, गोयमा! जे इमे अरहंता भगवंता एएसिणंजम्मणमहिमासुवा निक्खमणमहिमासु वा णाणुप्याय० वा परिनिव्वाण वा एवं खलु गोयमा! असुरकुमारावि देवा वुट्टि पक०, एवं नागकुमारावि एवं जाव थणियकुमारा वाणमंतरजोइसियवेमाणिय एवं चेव // सूत्रम् 504 // १कतिविहेण मित्यादि, उन्माद उन्मत्तता विविक्तचेतनाभ्रंश इत्यर्थः, जक्खाएसे यत्ति यक्षो देवस्तेनावेशः प्राणिनोऽधिष्ठान यक्षावेशः, मोहणिज्जस्से त्यादि तत्र मोहनीयं मिथ्यात्वमोहनीयं तस्योदयादुन्मादो भवति यतस्तदुदयवर्ती जन्तुरतत्त्वं तत्त्वं मन्यते तत्त्वमपि चातत्त्वम्, चारित्रमोहनीयं वा यतस्तदुदये जानन्नपि विषयादीनां स्वरूपमजानन्निव वर्त्तते, अथवा चारित्रमोहनीयस्यैव विशेषो वेदाख्यो मोहनीयम्, यतस्तदुदयविशेषेऽप्युन्मत्त एव भवति, यदाह चिंतेइ 2 दडुमिच्छइ 2 दीहं नीससह 3 तह जरे 4 दाहे 5 / भत्तअरोअग 6 मुच्छा 7 उम्माय 8 न याणई 9 मरणं १०॥१॥इति / एतयोश्चोन्मादत्वे समानेऽपि विशेष चिन्तयति द्रष्टुमिच्छति दीर्घ निःश्वसिति तथा ज्वरो दाह भक्तारोचकत्वं मूर्छा उन्मादो न जानाति मरणं च / / 14 शतके उद्देशक: 2 उन्मादाधिकारः। सूत्रम् 503 यक्षावेशमोहोउन्मादप्रकारी, नै०असु० आदीनामुन्मादप्रकार: | तस्यहेत्वादि| प्रश्नाः / सूत्रम् 504 इन्द्रासुरादयो जिनजन्मा| दिसु केनप्रकारेण मेघवृष्टिं प्रकुर्वन्त्यादिप्रश्नाः। // 1057 //

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