Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 491
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1013 // 0 त्ति लोकान्तस्य परिमण्डलाकारत्वेन मुरजसंस्थानता दिशः स्यात्ततश्च लोकान्तं प्रतीत्य मुरजसंस्थितेत्युक्तम्, एतस्य च पूर्वां दिशमाश्रित्य चूर्णिकारकृतेयं भावना, पुव्वुत्तराए पएसहाणीए तहा दाहिणपुव्वाए रुयगदेसे मुरजहे8 दिसि अंते चउप्पएसा दट्ठव्वा मज्झे य तुडं हवइ त्ति, एतस्य चेयं स्थापना-0। अलोगं पडुच्च सगडुद्धिसंठिय त्ति रुचके तु तुण्डं कल्पनीयमादौ संकीर्णत्वात्तत उत्तरोत्तरं विस्तीर्णत्वादिति, 11 एगपएसवि. त्ति, कथम्? अत आह, अणुत्तर त्ति वृद्धिवर्जिता यत इति // 480 // 13 किमियं भंते! लोएत्ति पवुच्चइ?,गोयमा! पंचत्थिकाया, एसणंएवतिएलोएत्ति पवुच्चइ, तंजहा-धम्मत्थिकाए अहम्मत्थिकाए जाव पोग्गलत्थिकाए। 14 धम्मत्थिकाए णं भंते! जीवाणं किं पवत्तति?, गोयमा! धम्मत्थिकाएणं जीवाणं आगमणगमण भासुम्मेसमणजोगा वइजोगा कायजोगाजे यावन्ने तहप्पगारा चला भावा सव्वे ते धम्मत्थिकाए पवत्तंति, गइलक्खणेणं धम्म०। 15 अहम्मत्थिकाएणं जीवाणं किं पव०?, गोयमा! अहम्मत्थि जीवाणं ठाणनिसीयणतुयट्टण मणस्स य एगत्तीभावकरणता जे यावन्ने थिरा भावा सव्वे ते अहम्मत्थिकाये पव०, ठाणलणं अहम्म० // 16 आगासत्थिकाएणं भंते! जीवाणं अजीवाण य किं पवत्तति?,गोयमा! आगासत्थिकाएणं जीवदव्वाण य अजीवदव्वाण य भायणभूए एगेणविसे पुन्ने, दोहिवि पुन्ने, सयंपिमाएजा। कोडिसएणवि पुन्ने कोडिसहस्संपि माएजा // 1 // अवगाहणालणं आगास० // 17 जीवत्थिकारणं भंते! जीवाणं किं पव०?, गोयमा! जीवत्थि जीवे अणंताणं आभिणिबोहियनाणपजवाणं अणंताणंसुयनाणपज्जवाणं एवं जहा बितियसए अत्थिकायउद्देसए जाव उवओगंगच्छति, उवओगलणंजीवे॥१८ पोग्गलत्थिकाए णंपुच्छा, गोयमा! पोग्गलत्थि जीवाणं ओरालियवेउब्विय 13 शतके उद्देशकः४ नरकपृथिव्यधिकारः। सूत्रम् 481 पञ्चास्तिकायलोकप्रश्नः। 7. अस्तिकाय| प्रवर्तनद्वारम्। | धर्माधर्माऽऽकाशजीवपुगलपद्यास्तिकायैः प्रयोजनादिप्रश्नाः / 8 // 1013 //

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