Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्य श्रीअभय. सव्वत्थ वृत्तियुतम् भाग-२ // 1020 // स्थापना चेयम्- | 1 2 3 4 5 र 10 परमाणुसङ्ख्या एतदेवाह, एवं एएणंगमएणमित्यादि, आगासत्थिकायस्स है |13 शतके उकोसपयं 4/6/8/10/12/14/16/18/20/22 जघन्यस्पर्श भाणियव्वं ति सर्वत्र, एकप्रदेशिकाधनन्तप्रदेशिकान्ते भागिलं तिगवला उद्देशकः४ नरकपृथिसूत्रगण उत्कृष्ट-७१२ 17 22 27 32 37 4247 52 उत्कृष्टस्पर्श पदमेव न जघन्यकमित्यर्थः, आकाशस्य सर्वत्र विद्य- व्यधिकारः। सूत्रम् 483 मानत्वादिति // 26 संखेज्जा भंते! इत्यादि, तेणेव त्ति यत् सङ्खयेयकमयः स्कन्धस्तेनैव प्रदेशसङ्ख्येयकेन द्विगुणेन द्विरूपाधिकेन / (अपूर्णम्) स्पृष्टः, इह भावना, विंशतिप्रदेशिकः स्कन्धो लोकान्त एकप्रदेशे स्थितः स च नयमतेन विंशत्याऽवगाढप्रदेशैः विंशत्यैव च जीवैकप्रदेश पुद्गलैकव्यायमतेनैवाधस्तनैरुपरितनैर्वा प्रदेशैःद्वाभ्यांच पार्श्वप्रदेशाभ्यां स्पृश्यत इति, उत्कृष्टपदे तु विंशत्या निरुपचरितैरवगाढप्रदेशः, दिसङ्ख्याताएवमधस्तनै 20 रुपरितनैः 20 पूर्वापरपार्श्वयोश्च विंशत्या 20 द्वाभ्यां च दक्षिणोत्तरपार्श्वस्थिताभ्यां स्पृष्टस्ततश्च विंशतिरूपः सङ्ख्यातान न्तप्रदेशानां सङ्ख्याताणुकः स्कन्धः पञ्चगुणया विंशत्या प्रदेशानां प्रदेशद्वयेन च स्पृष्ट इति, अत एव चोक्तम्, उक्कोसपए तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं ति॥२७ असंखेज्जे त्यादौ षट्सूत्री तथैव // 28 अणंता भंते! इत्यादिरपि षट्सूत्री तथैव, नवरमिह यथा / कालैकसमय स्य धर्मादिजघन्यपद औपचारिका अवगाहप्रदेशा अधस्तना उपरितना वा तथोत्कृष्टपदेऽपि, न हि निरुपचरिता अनन्ता आकाशप्रदेशा भिश्चसह स्पर्शनाप्रश्नाः। अवगाहतः सन्ति, लोकस्याप्यसङ्ख्यातप्रदेशात्मकत्वादिति / इह च प्रकरण इमे वृद्धोक्तगाथे भवतः, धम्माइपएसेहिं दुपएसाई जहन्नयपयम्मि। दुगुणदुरूवहिएणं तेणेव कह न हु फुसेज्जा? // 1 // एत्थ पुण जहन्नपयं लोगते तत्थ लोगमालिहिउं। फुसणा दावेयव्वा ] अहवाखंभाइकोडीए॥२॥इति 29 एगेभंते! अद्धासमए इत्यादि, इह वर्तमानसमयविशिष्टः समयक्षेत्रमध्यवर्ती परमाणुरद्धासमयो जघन्यपदे द्विप्रदेशादिर्द्विगुणद्विरूपाधिकैर्धर्मादिप्रदेशैस्तेनैव कथं नु स्पृशेत्? // 1 // अत्र जघन्यपदं लोकान्ते ततो लोकमालिख्य स्पर्शनां दर्शयेदथवा स्तम्भादिकोट्याम् // 2 // // 1020 //
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