Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1034 // रत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्वंते कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयपरिसामंतेसुचोयट्ठीए आयावा जाव सहस्सेसु अन्नयरंसि आयावा असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उव०, तत्थणं अत्थेग० आयावगाणं असुरकुमाराणंदेवाणं एगंपलि. ठिईप० तत्थणं अभीयिस्सवि देवस्स एगंपलि. ठिई प० ।सेणंभंते! अभीयीदेवेताओदेवलोगाओ आउक्ख०३ अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिंग०? कहिं उव०?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति, सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 492 // 13-6 // तए ण मित्यादि, 4 सिंधुसोवीरेसु त्ति सिन्धुनद्या आसन्नाः सौवीरा जनपदविशेषाः सिन्धुसौवीरास्तेषु, वीईभए त्ति विगता ईतयो भयानि च यतस्तद्वीतिभयं विदर्भेति केचित्, सव्वोउयवन्नओ त्ति, अनेनेदं सूचितम्, सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगास इत्यादीति / नगरागरसयाणं ति करादायकानि नगराणि सुवर्णाद्युत्पत्तिस्थानान्याकराः, नगराणि चाकराश्चेति नगराकरास्तेषां शतानि नगराकरशतानि तेषाम्, नगरसयाणं ति क्वचित्पाठः, विदिन छत्त चामर वालवीयणाणं ति वितीर्णानि छत्राणि चामररूपवालव्यजनिकाश्च येषां ते तथा तेषाम् // 491 // 8 अप्पत्तिएणं मणोमाणसिएणं दुक्खेणं ति, अप्रीतिकेनाप्रीतिस्वभावेन मनसो विकारो मानसिकं मनसि मानसिकं न बहिरुपलक्ष्यमाणविकारं यत्तन्मनोमानसिकं तेन, केनैवंविधेन? इत्याह, दुःखेन, सभंडमत्तोवगरणमायाय त्ति स्वां स्वकीयां भाण्डमात्रां भाजनरूपं परिच्छदम्, उपकरणञ्च शय्यादि गृहीत्वेत्यर्थः, अथवा सह भाण्डमात्रया यदुपकरणं तत्तथा तदादाय, समणुबद्धवेरि त्ति, अव्यवच्छिन्नवैरिभावः, निरयपरिसामंतेसुत्ति नरकपरिपार्श्वतः, चोयट्ठीए आयावा असुरकुमारावासेसु त्ति, इह आयाव त्ति, असुरकुमारविशेषाः, विशेषतस्तु नावगम्यत इति // 492 // त्रयोदशशते षष्ठः // 13-6 // |13 शतके उद्देशक:६ नारकाधुप| पाताधिकारः। सूत्रम् 491 प्रभुःचंपान० सिन्धुसौ० वीतीभयउदायनधर्मजागरिकापुत्राभीच्यपहाय भगीनेयकेसिराज्याभिषेक| उदायनदीक्षा मोक्षादि। // 1034 //
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