Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 481
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-२ // 1003 // संखेजवित्थडेसु विमाणेसु एगसमएणं के सोहम्मा देवा उववजंति? के० तेउलेसा उव०? एवं जहा जोइसियाणं तिन्नि गमगा तहेव तिनिगमगा भाणियव्वा नवरं तिसुविसंखेज्जा भाणि०, ओहिनाणी ओहिदसणी य चयावेयव्वा, सेसंतं चेव / असंखेज्जवित्थडेसु एवं चेव तिन्नि गमगाणवरं तिसुवि गमएसु असं० भाणि०, ओहिनाणी य ओहिदसणीय सं० चयंति, सेसंतंचेव, एवं जहा सोहम्मे वत्तव्वया भणिया तहा ईसाणेवि छ गमगा भाणि०, सणंकुमारे एवं चेव नवरं इत्थीवेयगा न उव० पन्नत्तेसु य न भण्णंति, असन्नी तिसुवि गमएसुन भण्णंति, सेसंतं चेव, एवं जाव सहस्सारे, नाणत्तं विमाणेसुलेस्सासुय, सेसं तं चेव // 11 आणयपाणयेसुणं भंते! कप्पेसु के विमाणावाससया प०?, गोयमा! चत्तारि विमाणवाससया प०, ते णं भंते! किंसं असं० गोयमा! संखेजवित्थ० असंखेजवि० एवं संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगा जहा सहस्सारे असंखेजवित्थडे० उववजंतेसुयचयंतेसुय एवं चेव सं० भाणियव्वा पन्नत्तेसु असं० नवरं नोइंदियोवउत्ता अणंतरोववन्नगा अणंतरोगाढगा अणंतराहारगा अणंतरपज्जत्तगा य एएसिंज० एक्को वा दो वा तिन्नि वा उ० सं० पं० सेसा असं भाणि / आरणचुएसु एवं चेव जहा आणयपाणएसुनाणत्तं विमाणेसु, एवं गेवेजगावि।१२ कति णं भंते! अणुत्तरविमाणा प.?, गोयमा! पंच अणुत्तरविमाणा प०, तेणं भंते! किं संखेजवित्थडा असंरवेजवित्थडा?, गोयमा! संखेजवित्थडेय असंखेन्जवित्थडाय, १३पंचसुणंभंते ! अणुत्तरविमाणेसुसंखेजवित्थडे विमाणे एगसमएणं के० अणुत्तरोववाइया देवा उव०?, के० सुक्कलेस्सा उव०? पुच्छा, तहेव गोयमा! पंचसुणं अणुत्तरवि० संखेजवित्थडे एगसमएणं ज० एक्को वा दो वा तिन्नि वा उ० सं० अणुत्तरोववाइया देवा उव० एवं जहा गेवेजविमाणेसु संखेजवि० नवरं किण्हपक्खिया अभवसिद्धिया तिसु अन्नाणेसु एएन उव० न चयंति न पन्नत्तएसुभाणि० अचरिमावि खोडिल्जंति जाव सं० चरिमा पं० सेसंतं, असंखेजवित्थडेसुवि एए न भन्नंति नवरं अचरिमा अत्थि, सेसं जहा गेवेजएसु असंखेजवि० जाव असं० अचरिमा प०। 14 चोसट्ठीए णं भंते! |13 शतके उद्देशकः२ देवाधिकारः। सूत्रम् 473 चतुर्निकायदेवभेदप्रभेद प्रत्येकानामावासैकसमये उत्पादोद्वर्तना तेषु सम्यग्दृष्ट्यादीनामुत्पादलेश्यावान्भूत्वादिप्रश्ना: 8 // 1003 //

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