Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 02
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 973 // सव्वट्ठसिद्धत्ति, नवरं तमा अहेसत्तमाए नो उववाओ असंखिज्जवासाउयअकम्मभूमगअंतरदीवगवज्जेसु, 12 देवाधिदेवाणं भंते! कतो० उवउज्जंति किं नेरइएहितो उववखंति?, पुच्छा, गोयमा! नेरइएहिंतो उव० नो तिरि० नो मणु० देवेहितोवि उव०, 13 जइ नेरइएहितो एवं तिसुपुढवीसु उव० सेसाओखोडेयव्वाओ, 14 जइ देवेहितो०, माणिएसुसव्वेसु उव० जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति, सेसा खो०,१५ भावदेवाणं भंते! कओ० उव०?, एवं जहा वक्वंतीए भवणवासीणं उववाओ तहा भाणियव्वो॥सूत्रम् 462 / / 16 भवियदव्वदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई, 17 नरदेवाणं पुच्छा गोयमा! ज० सत्त वाससयाई उ० चउरासीई पुव्वसयसहस्साइं, 18 धम्मदेवाणं भंते! पुच्छा, गोयमा! ज० अंतो० उ० देसूणा पुव्वकोडी, 19 देवाधिदेवाणं पुच्छा गोयमा! ज० बावत्तरिं वासाइं उ० चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं, 20 भावदेवाणं पुच्छा गोयमा! ज० दस वाससहस्साई उ० तेत्तीसं सागरोवमाई॥सूत्रम् 463 // 21 भवियदव्वदेवाणं भंते! किं एगत्तं पभूविउव्वित्तए, पुहुत्तं पभूविउव्वित्तए?, गोयमा! ए.पि पभूविउ०, पु०पि पभू विउ०, एगत्तं विउव्वमाणे एगिदियरूवंवा जाव पंचिंदियरूवंवा पुहत्तं विउव्वमाणे एगिदियरूवाणिवा जाव पंचिंदिय० वाताईसंखेल्जाणिवा असंखेन्जाणिवा संबद्धाणिवा असंबद्धाणि वा सरिसाणिवा असरिसाणिवा विउव्वंति वित्ता तओ पच्छा अप्पणो जहिच्छियाई कज्जाइं करेंति, एवं नरदेवावि, एवं धम्मदेवावि, 22 देवाधिदेवाणं पुच्छा, गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए पुहुत्तपिपभू विउ० नो चेवणं संपत्तीए विउव्विंसुवा विउव्विंति वा विउव्विस्संति वा / 23 भावदेवाणं पुच्छा जहा भ०दव्वदेवा।सूत्रम् 464 // 24 भवियदव्वदेवाणं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववखंति? किं नेरइएसु उव०? जाव देवेसुउव०?, गोयमा! नो नेरइएसु उव० नो तिरि० नो मणु देवेसु उव०, जइ देवेसु उव० सव्वदेवेसु उव्वखंति जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति / 25 नरदेवा णं भंते! 12 शतके उद्देशकः९ देवभेदाधिकारः। सूत्रम् 462 भव्यद्रव्यदेवनरदेवधर्मदेवदेवाधिदेवभावदेवानामागतिप्रश्नाः / सूत्रम् 463-464 भव्यद्रव्यदेवनरदेवधर्मदेवदेवाधि० भान्देवानां स्थितिः तेषां विकुर्वणशक्तिरादिप्रश्नाः / // 973 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574