Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: ZZZ Unknown
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ध्याख्या
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प्रज्ञप्तिः
अभयदेवीया वृत्तिः ॥५२६॥
७ शतके उद्देशः१ सामायिकव्रतयोःक्रिया दानफलं सू०२६१ २६२-२६३
'तंसिमित्यादि, अंत करेइति। अत्र क्रियोक्ता, अथ तद्विशेषमेव श्रमणोपासकस्य दर्शयबाह
समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवासए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते! किं ईरियावहिया किरिया कजइ ? संपराइया किरिया कजई ?, गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवासए अच्छमाणस्स आया अहिगरणीभवइ, आयाहिगरणवत्तिय च णं तस्स नो ईरियावहिया किरिया कजइ, संपराइया किरिया कजइ, से तेणटेणं जाव संपराइया ।। ( सूत्रं २६१) समणोवासगस्सणं भंते ! पुवामेव तसपाणसमारंभे पञ्चक्खाए भवति, पुढविसमारंभे अपञ्चक्खाए भवइ, से य पुढवि खणमाणे अण्णयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा से णं भंते ! तं वयं अतिचरति !, णो तिणढे समढे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउ| इति । समणोवासयस्स णं भंते ! पुवामेव वणस्सइसमारंभे पच्चक्खाए, से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेजा से णं भंते ! तं वयं अतिचरति !, णो तिणढे समढे, नो खलु नस्स अइवायाए आउदृति (सूत्रं २६२)। समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइ. मेणं पडिलाभमाणे किं लगभइ , गोयमा! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा जाव पडिलामेमाणे तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तमेव समाहिं पडिल भइ । समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे किं चयति ?, गोयमा! जीवियं चयति दुच्चयं चयति दुक्करं करेति दुल्लहं लहइ बोहिं बुज्झइ तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति (सूत्रं २६३)
प्र०आ०२८८
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॥५२६॥

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