Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: ZZZ Unknown
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवी
॥५४३॥
णीवि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा नेरइया । एएसि णं भंते! जीवाणं सव्वमूलगुणपञ्चकखाणीणं देसमूलगुणपञ्चत्रवाणीणं अपञ्चक्खाणीण य कयरे २ हिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोत्रमा ! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपञ्चकखाणी, देसमूलगुणपञ्चकखाणी असंखेज्जगुणा, अपञ्चक्खाणी अनंतअप्पाबहूगाणि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सव्वत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया देस* मूलगुणपञ्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा । जीवा णं भंते! किं सव्युत्तरगुणपञ्चकखाणी देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चवाणी ?, गोयमा ! जीवा सवुत्तरगुणपञ्चवाणीवि तिन्निवि, पंचिदियतिरिक्खजोणिया मस्सा य एवं चेव, सेसा अपञ्चवाणी जाव वैमाणिया । एएसि णं भंते ! जीवाणं सव्युत्तरगुणपचक्खाणी अप्पा बहुगाणि तिन्निवि जहा पढमे दंडए जाव मणूसाणं ॥ जीवा णं भंते! किं संजया असंजया संजयासंजया ?, गोयमा ! जीवा संजयावि असंजयावि संजयासंजयावि तिन्निवि, एवं जहेब पन्नवणाए तहेव भाणियव्वं, जाव वैमाणिया, अप्पाबहुगं तहेव तिन्हवि भाणियव्वं ॥ जीवा णं भंते! किं पञ्चवाणी अपञ्चवाणी पञ्चखाणापच्चत्रवाणी, गोगमा ! जीवा पञ्चक्खाणीवि एवं तिन्निवि, एवं मणुस्साणवि तिन्निवि, पंचिदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया, सेसा सव्वे अपचक्खाणी जाव वेनाणिया । एएसि णं भंते! जीवाणं पञ्चक्खाणीनं जाव विसेसाहिया वा !, गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पञ्चक्खाणी, पञ्चवाणापच्चक्खाणी असंखेगुणा, अपञ्चचखाणी अनंतगुणा, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सव्वधोवा पच्चक्खाणापञ्चकखाणी, अपञ्चकखाणी
७ शतके उद्देशः २ मूलगुणादिप्रत्याख्यानं
सू० २७२
॥५४३॥

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