Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: ZZZ Unknown
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| ७ शतके
उद्देशः ७ | हस्तिकुन्थुसमत्वादि सू० २९३
मा! जाव समे चेव जीवे ( सुत्रं २९३)॥ व्याख्या
'छउमत्थे णमित्यादि, एतच्च यथा प्राग् व्याख्यातं तथा द्रष्टव्यम् ।। अथ जीवाधिकारादिदमाह-से नूण मित्यादि, प्रज्ञप्तिः
'एवं जहा रायप्पेसणइजेत्ति, तत्र चैतत्सूत्रमेवं-समे चेव जीवे, से गृणं भंते ! हत्थीओ कंथ अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरिअभयदेवी
* यतराए चेव अप्पासवतराए चेव, कुंथूओ हत्थी महाकम्मतराए चेव ४१, हंता गोयमा !। कम्हा णं भंते ! हथिस्स य कुंथुस्स य या वृत्तिः
समे चेव जीवे ?, गोयमा ! से जहानामए-कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा निवाया निवायगंभीरा, अहे णं केई ॥५७२॥
| पुरिसे पईवं च जोइं च गहाय तं कूडागारसालं अंतो २ अणुपविसेइ २ तीसे कूडागारसालाए सवओ समंता घणनिचियनिरन्तर| निच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेति तीसे य बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेजा, से य पईवे कूडागारसालं अंतो २ ओभासति उज्जोएइ | तवइ पभासेइ, नो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं, तए णं से पुरिसे तं पईवं इड्डरेणं पिहेइ, तए णं से पईवे इड्डरस्स अंतो २ ओभासेइ,
नो चेव णं इड्डरस्स बाहि, एवं गोकिलंजएणं गंडवाणियाए पच्छिपिडएणं आढएणं अद्धाढएणं पत्थएणं अद्धपत्थएणं कुलवेणं अद्धकु| लवेणं चउब्भाइयाए अट्ठभाइयाए सोलसियाए बचीसियाए चउसट्टियाए, तए णं से पुरिसे तं पईवं दीवगचंपणएणं पिहेइ, तए णं से | पईवे तं दीवगचंपणयं अंतो २ ओभासइ,नो चेव णं दीवगचंपणयस्स बाहि, नो चेव णं चउसट्टियाए बाहि, जाव नो चेव णं कूडागा| रसालाए बाहिं, एवामेव गोयमा जीवेवि जारिसियं पुवकम्मनिबद्धं बोंदि निव्वत्तेइ तं असंखेजेहिं जीवपएसेहिं सचित्तीकरेइ, शेष तु लिखितमेवास्ति, अस्य चायमर्थः-कूटाकारेण-शिखराकृत्या युक्ता शाला कूटाकारशाला 'दुहओ लित्ता' बहिरन्तश्च गोमयादिना लिप्सा 'गुप्ता' प्राकारापाता 'गुत्तदुवारा' कपाटादियुक्तद्वारा 'निवाया' वायुप्रवेशरहिता, किल महद्हं प्रायो निवातं न भवतीत्यत
॥५७२॥

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