Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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अवस्थित अवधिज्ञान (क्षेत्र-उपयोग-लब्धि से विचारणा)
अवस्थित के सम्बन्ध में अन्य ग्रंथों में प्राप्त चर्चा आवश्यकनियुक्ति के आधार पर अवस्थित का स्वरूप
क्षेत्र की अपेक्षा उपयोग की अपेक्षा * मतान्तर लब्धि की अपेक्षा
जघन्य अवस्थान किसके होता है? . तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर अवस्थित का स्वरूप चल द्वार एवं अवधिज्ञान
मूल में वृद्धि दो प्रकार की होती है द्रव्यादि में वृद्धि | हानि
+ मतान्तर . द्रव्यादि का परस्पर संबंध वर्धमान-हीयमान . वृद्धि और हानि के कारण तीव्र-मंद द्वार एवं अवधिज्ञान
तीव्र-मंद-मिश्र का स्वरूप स्पर्धक अविधज्ञान
स्पर्धक का स्वरूप स्पर्धकों का स्थान स्पर्धकों की संख्या स्पर्धकों में उपयोग स्पर्धक के प्रकार अनुगामी और अप्रतिपाती स्पर्धकों में अंतर
अननुगामी और प्रतिपाती स्पर्धकों में अंतर प्रतिपाती-अप्रतिपाती अवधिज्ञान . प्रतिपाती और अनानुगामिक में अंतर प्रतिपात-उत्पाद द्वार के अन्तर्गत अवधिज्ञान
बाह्य अवधिज्ञान का स्वरूप आभ्यन्तर अवधि का स्वरूप
+ उत्पाद और प्रतिपाद के सम्बन्ध में मन्तव्य ज्ञान-दर्शन तथा विभंग द्वार
ज्ञान का स्वरूप दर्शन का स्वरूप ज्ञान और दर्शन का भेद क्यों?
विभंगज्ञानी के प्रकार देश द्वार और अवधिज्ञान . एक क्षेत्र, अनेक क्षेत्र अवधिज्ञान
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