Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ [6] आपके यहा सराफी, सोना चांदी, लेन देन आदिका व्यापार होता है । सं० १९८५ मे टेशनके पास माधोगंज वसनेसे सेठ सितावरायजीने एक बृहत् जैन धर्मशाला और जैन मंदिर बनवानेका विचार किया और उस कामको प्रारम्भ भी कर दिया परन्तु अचानक आयुर्मके भग्न होनेमे आपके जीवन में वह कार्य पूरा न होसका। सेठ लक्ष्मीचंदजीने सुपुत्रकी भांति अपने पूज्य संरक्षककी हार्दिक इच्छाको बडीही उदारताके साथ पूर्ण किया और ९००००) नव्वेहजार रु० लगाकर एक विशाल धर्मशाला और जिनमंदिर तय्यार करा दिया जो भेलसामें एक दर्शनीय इमारत है। आपके मित्र धर्मप्रेमी सेठ राजमलजी बडजात्या तथा वाबू तखतमलजी जैन वकील आपको धर्मकार्यो तथा परोपकारमें सदा ही प्रेरणा व सहाय करते रहते है। उक्त उभय सज्जनोंके प्रयत्नसे वि० सं० १९८८ वीर सं० २४५८ कार्तिक शुक्ला '५को देवाधिदेव श्री जिनेन्द्रदेवका स्थापन उक्त धर्मशालाके जिन मंदिर में किया गया । इसीमें आप नित्य पूजन करते है व धर्मशालामे ही एक तरफ निवास रखते है। इस जिन मंदिरमे हरएक जैनी दर्शन कर सक्ता है, विनैकवारोको भी दर्शनकी मनाई नहीं है । इस धर्मशाला व मंदिरकी शोभा व दुरुस्तीमें १०००) और खर्च करके उस इसारतको दर्शनीय बना दिया है। आपने इस इमारतका ग्वालियर राज्यमें टूष्ट मी कर दिया है। तथा २००००) की दुकानें लगादी हैं जिनकी आमदनीसे धर्मशालाका खर्च चला करे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 317