Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा की विकास-परम्परा तथा संस्कृति और सभ्यता के उन्नत-उदात्त अवस्था की आपातमनोहर रुचिरता का संवहन करनेवाली नरवाहनदत्त की आत्मकथा से कमनीय इस सद्ग्रन्थ का सांगोपांग अध्ययन अभी तक अपेक्षित ही रह गया है। यह प्राचीन कथा अब भी भारतीय मनीषा की प्रतीक्षा कर रही है। प्रो. लाकोत निश्चय ही अतिशय श्लाघ्य प्रज्ञापुरुष हैं, जिनके प्रति हम इसलिए सदा कृतज्ञ रहेंगे कि उन्होंने 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' जैसे महत्त्वपूर्ण भारतीय साहित्यिक अवशेष को न केवल नष्ट होने से बचाया, अपितु उसका अध्ययन, मूल्यांकन और मुद्रण-प्रकाशन किया।
'बृहत्कथा' के बुधस्वामी कृत संस्कृत-नव्योद्भावन के बाद क्षेमेन्द्र कृत 'बृहत्कथामंजरी' का पांक्तेय स्थान है। क्षेमेन्द्र कश्मीर के राजा अनन्त (सन् १०२९-१०६४ ई.) के सभासद थे। इस प्रतिभाशाली कवि का दूसरा नाम व्यासदास था ।किसी बड़े काव्य को संक्षिप्त करके उसे मौलिक रूप देने में इन्होंने श्लाघ्य कुशलता आयत्त की थी। इनके द्वारा किया गया रामायण और महाभारत का संक्षेप 'रामायणमंजरी' और 'भारतमंजरी' के नाम से प्रसिद्ध है। इनका 'बोधिसत्वावदानकल्पलता' ग्रन्थ भी प्रसिद्ध है। एतदतिरिक्त, 'कलाविलास', 'देशोपदेश', 'नर्ममाला' और 'समयमातृका' ग्रन्थों में क्षेमेन्द्र की सारस्वत प्रतिभा का अतिशय उत्कृष्ट रूप उपलब्ध होता है।
'बृहत्कथा' पर आधृत क्षेमेन्द्र की पार्यन्तिक कथाकृति 'बृहत्कथामंजरी' १८ लम्बकों में निबद्ध है। इसमें, विचित्रता, अलौकिकता तथा विस्मयकारी रसपेशलता के लिए देश-देशान्तर में ख्यात 'बृहत्कथा' का नव्योद्भावन संक्षिप्त और निरलंकार होते हुए भी प्रभावक और सरस है। फिर भी, कथा की अधिक संक्षिप्तता तथा अस्पष्टता के कारण क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथामंजरी' उतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितनी वह आलोचना का कारण बनी। प्रसिद्ध पाश्चात्य पण्डित कीथ ने क्षेमेन्द्र की आलोचना करते हए कहा भी है कि कहीं अत्यधिक सं
एता के कारण 'बृहत्कथामंजरी' की कथाओं का सारा आकर्षण और रोचकता नष्ट हो जाती है। घटनाओं के विनियोग को अधिक महत्त्व न देने के कारण ही क्षेमेन्द्र कथादक्ष होते हुए भी कलादक्ष नहीं सिद्ध हो सके और इसीलिए उनकी बृहत्कथामंजरी' में 'कथासरित्सागर' की भाँति रुचिकरता नहीं आ पाई।
सोमदेव (सन् १०६३–१०८१ई)-कृत 'कथासरित्सागर' 'बृहत्कथा' का अन्तिम संस्कृतनव्योद्भावन है। क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथामंजरी' की भाँति यह भी कश्मीरी वाचना है। कुछ विपर्यास के साथ यह कथाग्रन्थ भी १८ लम्बकों में विभक्त है। क्षेमेन्द्र की तरह सोमदेवभट्ट भी कश्मीर के राजा अनन्त के सभापण्डित थे। इन्होंने अनन्त की रानी सूर्यमती के मनोविनोद के लिए 'कथासरित्सागर' की रचना की। एक सौ चौबीस तरंगों में विभक्त २१,३८८ श्लोकप्रमाण यह ग्रन्थ वर्तमान रूप में अनेक छोटी-बड़ी कहानियों का संग्रह है। प्रधान कथा के साथ अनेक अवान्तर कथाओं के गुम्फन के कारण सोमदेव ने यथार्थ ही इसे कथा की सरिताओं का सागर
१. इत्येतां विपुलाश्चयां स राजा सातवाहनः ।
गणाढ्याच्छिष्यसहितः समासाद्य बृहत्कथाम् ॥... क्षेमेन्द्रनामा तनयस्तस्य विद्वत्सु विश्रुतः। ... कथामेतामनुध्यायन्दिनेषु विपुलेक्षणः । विदधे विबुधानन्दसुधास्यन्दतरङ्गिणीम् ॥-उपसंहार, श्लोक २७, ३६, ४० २. विशेष विवरण के लिए द्र. कीथ : 'संस्कृत-साहित्य का इतिहास' (हिन्दी-अनु. श्रीमंगलदेव शास्त्री), पृ. ३३५