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सर्वज्ञ के निर्णय में अनन्त पुरुषार्थ
1. सम्यग्दृष्टि की धर्मभावना
2. सर्वज्ञ के निर्णय में पुरुषार्थ
3. सर्वज्ञ की यथार्थ श्रद्धा का फल 4. द्रव्यदृष्टि
5. जड़ और चेतन पदार्थों की क्रमबद्धपर्याय
6. उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता
7. द्रव्य-गुण- पर्याय 8. सम्यग्दर्शन
9. कर्तृत्व और ज्ञातृत्व
10. साधकदशा का स्वरूप
11. कर्म में उदीरणा इत्यादि प्रकार
12. मुक्ति की निःसन्देह प्रतिध्वनि
13. सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि की मान्यता में अन्तर
14. अनेकान्त और एकान्त
15. पाँच समवाय
16. अस्ति - नास्ति .
17. निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध
18. निश्चय - व्यवहार
19. सर्वज्ञ और आत्मज्ञ
20. निमित्त की उपस्थिति रहने पर भी उसके बिना कार्य का होना । सर्वज्ञ के निर्णय में इन सबका निर्णय आ जाता है। इसमें अनेक तरह से बारम्बार पुरुषार्थ की स्वतन्त्रता सिद्ध की है और इस प्रकार स्व-सन्मुखता कराकर आत्मा की पहचान करायी है । जिज्ञासु जन इस प्रवचन के रहस्य को समझकर, सर्वज्ञ का निर्णय कर, ज्ञानस्वभावी आत्मा के सन्मुख होकर मोक्ष का सत्य पुरुषार्थ प्रगट करें - यही भावना है।