Book Title: Vastu Vigyansar
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 74
________________ उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता 61 मेरा हाथ उसे स्पर्श करता है, तब वह उठती है अर्थात् जब मेरा हाथ उसके लिए निमित्त होता है, तब वह उठती है' - ऐसा माननेवाला वस्तु की पर्याय को स्वतन्त्र नहीं मानता अर्थात् उसकी संयोगीदृष्टि है। वह वस्तु के स्वभाव को ही नहीं मानता; इसलिए मिथ्यादृष्टि है। जब लकड़ी ऊपर नहीं उठती, तब उसमें ऊपर उठने की योग्यता ही नहीं है और जब उसमें योग्यता होती है, तब वह स्वयं ऊपर उठती है, उसे हाथ ने नहीं उठाया, किन्तु जब वह ऊपर उठती है, तब हाथ इत्यादि निमित्त स्वयमेव होते ही हैं। इस प्रकार उपादान-निमित्त का मेल स्वभाव से ही होता है। निमित्त का ज्ञान कराने के लिए ऐसा कथन मात्र व्यवहार ही है कि हाथ के निमित्त से लकड़ी ऊपर उठी है।' लोह चुम्बक सुई की क्रिया नहीं करता लोह चुम्बक की ओर लोहे की सुई खिंचती है, वहाँ लोह चुम्बक, सुई को नहीं खींचती किन्तु सुई अपनी योग्यता से ही गमन करती है। प्रश्न – यदि सुई अपनी योग्यता से ही गमन करती हो तो जब लोह चुम्बक उसके पास नहीं थी, तब उसने गमन क्यों नहीं किया? और जब लोह चुम्बक निकट आया, तभी क्यों गमन किया? उत्तर – पहले सुई में गमन करने की योग्यता ही नहीं थी, इसलिए उस समय लोह चुम्बक उसके पास (सुई को खींचने योग्य क्षेत्र में) हो ही नहीं सकती और जब सुई में क्षेत्रान्तर करने की योग्यता होती है, तब लोह चुम्बक आदि कोई निमित्त होता है। उपादान-निमित्त का ऐसा ही सम्बन्ध है कि दोनों का मेल होता है, तथापि एक-दूसरे के कारण किसी की क्रिया नहीं होती। सुई

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