Book Title: Vastu Vigyansar
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 126
________________ वस्तु के सामान्य-विशेषरूप... 113 अवलम्बन ज्ञान नहीं मानता अर्थात् सर्व निमित्त के बिना पूर्ण स्वाधीन केवलज्ञान का निर्णय करता हुआ और प्रतीति में लेता हुआ स्वाश्रित मति-श्रुतज्ञान, सामान्यस्वभाव के अवलम्बन से प्रगट होता है; इस प्रकार ज्ञान का कार्य परावलम्बन से नहीं होता किन्तु स्वाधीन स्वभाव के अवलम्बन से होता है, इसमें ज्ञान की स्वतन्त्रता बतायी है। ज्ञान की भाँति श्रद्धा की स्वतन्त्रता आत्मा में श्रद्धागुण त्रिकाल है। सामान्य श्रद्धागुण का जो स्वाश्रित विशेष है, वह सम्यग्दर्शन है। श्रद्धागुण का वर्तमान यदि देव-शास्त्र -गुरु इत्यादि पर के आश्रय से परिणमन करे तो उस समय श्रद्धागुण ने कौन सा विशेष कार्य किया? श्रद्धा सामान्यगुण है, उसका विशेष, सामान्य के अवलम्बन से ही होता है। सम्यग्दर्शनरूप विशेष पर के अवलम्बन से कार्य नहीं करता किन्तु सामान्यश्रद्धा के अवलम्बन से ही उसका विशेष प्रगट होता है। सम्यग्दर्शन उस श्रद्धागुण की विशेष दशा है। श्रद्धागुण त्रिकाल है और सम्यग्दर्शन उसकी पर्याय है। श्रद्धागुण के अवलम्बन से सम्यग्दर्शनरूप विशेष दशा प्रगट होती है। यदि देव, शास्त्र, गुरु इत्यादि पर के अवलम्बन से श्रद्धा का विशेष कार्य होता हो तो उस समय सामान्य श्रद्धा का विशेष क्या है ? विशेष के बिना सामान्य कदापि नहीं होता। आत्मा की श्रद्धा की वर्तमान अवस्थारूप जो कार्य होता है, वह त्रैकालिक श्रद्धागुण का है, वह कार्य किसी पर के अवलम्बन से नहीं, किन्तु सामान्य के अवलम्बन से प्रगट हुआ है। विशेष के बिना सामान्य हो ही नहीं सकता। आनन्द की भी स्वाधीनता ज्ञान और श्रद्धागुण के अनुसार आनन्दगुण के सम्बन्ध में भी

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