Book Title: Vastu Vigyansar
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ वस्तु के सामान्य-विशेषरूप... 107 उत्तर - जब ज्ञान की उस प्रकार की विशेषता की योग्यता नहीं होती, तब ज्ञान नहीं होता और जब इन्द्रियाँ होती हैं, तब भी ज्ञान जानने का कार्य तो अपने आप ही करता है। मोक्षमार्गप्रकाशक में कहा है कि 'निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का ज्ञान करना चाहिए' - यह उसी का विवरण चल रहा है। इन्द्रियों के होते हुए भी ज्ञान स्वतन्त्ररूप से अपनी अवस्था से जानता है। यदि यह माना जाएगा कि ज्ञान इन्द्रिय से जानता है तो इसका अर्थ यह होगा कि ज्ञान का विशेष कुछ कार्य नहीं करता और ऐसा होने पर बिना विशेष के सामान्यज्ञान का ही अभाव हो जाएगा; इसलिए यह सिद्ध हुआ कि ज्ञान, इन्द्रियों से नहीं जानता। अल्पज्ञान जब अपने द्वारा जानता है, तब अनुकूल इन्द्रियाँ उपस्थित रहती हैं किन्तु ज्ञान उनकी सहायता से नहीं जानता। इसका ही नाम निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है, किन्तु यदि यह माना जाएगा कि ज्ञान इन्द्रियों से जानता है तो वह मान्यता मिथ्या होगी क्योंकि इस मान्यता में निमित्त और उपादान एक हो जाते हैं। जीव का ज्ञानस्वभाव सिद्ध करने को आचार्यदेव शिष्य से पूछते हैं कि यदि जीव ने इन्द्रियों के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया तो विशेष ज्ञान ने कौन सा कार्य किया? उस समय तो उसका अभाव ही मानना होगा न? शिष्य ने उत्तर देते हुए कहा कि भले ही ज्ञानविशेष नहीं हो तो भी ज्ञानसामान्य तो त्रिकाल में रहेगा ही? और जानने का काम इन्द्रियों से होगा - ऐसा होने से ज्ञान का नाश नहीं होगा, अभाव नहीं होगा। तब आचार्यदेव उससे कहते हैं कि भाई! तेरा निर्विशेष सामान्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138