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वस्तुविज्ञानसार
आज श्रुतपञ्चमी है। करीब 1900 वर्ष पहले सातवें-छठे गुणस्थान में झुलते हुए महान् सन्त-मुनियों - आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि ने ज्ञान-प्रभावना का विकल्य होने से महान् परमागम शास्त्रों । (षट् खण्डागम) की रचना की और अङ्कलेश्वर में उत्साहपूर्वक
श्रुत-पूजा की थी। उस श्रुतपूजा का माङ्गलिक दिन ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी है।
मेरा ज्ञानस्वभाव सदा स्थिर रहे, मेरे ज्ञान की अटूटधारा बहती रहे अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न हो; इस प्रकार वास्तव में अन्तरङ्ग में पूर्णता की भावना उत्पन्न होने पर, उन्हें बाहर ऐसा विकल्प उठा कि श्रुतज्ञान-आगम स्थिर बना रहे; ऐसे श्रुत के विकल्प से महान परमागम शास्त्रों की रचना हुई और संघ ने उनकी श्रुतपूजा की; वही मङ्गल दिन आज (ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी) है। वास्तव में यह भावना दूसरे के लिए नहीं है, किन्तु अपने ज्ञान की अटूटधारा बहने की भावना है। वीतरागी सन्तों के द्वारा इन शास्त्रों की रचना हुई है। इन शास्त्रों में अनेक अपूर्व बातें हैं; उनमें से आज दो विशेष बातें कहनी हैं। ___ ज्ञान, इन्द्रियों से नहीं जानता। यदि ज्ञान, विशेष के बिना रहे, तो वर्तमान विशेष के बिना ज्ञान कैसे जानेगा? यदि विशेष न हो तो सामान्यज्ञान ही कहाँ रहा? यदि वर्तमान पर्यायरूप विशेष को नहीं मानेंगे तो 'सामान्यज्ञान है' इसका निर्णय भी कौन करेगा? निर्णय तो विशेषज्ञान करता है। वर्तमान विशेषज्ञान (पर्याय) को अन्तर्मुख करके परावलम्बनरहित सामान्य ज्ञानस्वभाव जैसा है, वैसा जानना, इसी में धर्म का समावेश हो जाता है।
ज्ञान, राग को जानता है, पर को जानता है, इन्द्रियों को जानता