________________
उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता
सम्यनियतिवाद अर्थात् सर्वज्ञवाद और उसका फल प्रश्न यह तो नियतिवाद हो गया ?
उत्तर – यह सम्यक्नियतिवाद है, मिथ्यानियतिवाद नहीं है। सम्यक्नियतिवाद का क्या अर्थ है ? यही कि जिस पदार्थ में, जिस समय, जिस क्षेत्र में, जिस निमित्त से, जैसा होना है, वैसा होता ही है, उसमें किञ्चित्मात्र भी परिवर्तन करने के लिए कोई समर्थ नहीं है ऐसा ज्ञान में निर्णय करना, सम्यक्नियतिवाद है और उस निर्णय में ज्ञानस्वभाव की ओर का अनन्त पुरुषार्थ आ जाता है।
जिस ज्ञान ने यह निर्णय किया कि सभी नियति है, उस ज्ञान में यह भी निर्णय हो गया कि किसी भी द्रव्य में कुछ भी परिवर्तन करना या राग-द्वेष करना मेरा कार्य नहीं है । इस प्रकार नियत का निर्णय करने पर ‘मैं पर का कुछ कर सकता हूँ' - ऐसा अहंकार दूर हो गया और ज्ञान, पर से उदासीन होकर, स्वभावसन्मुख हो गया । अब, राग के होने पर भी उसका निषेध करके, ज्ञान, द्रव्यस्वभाव की ओर सन्मुख होता है। जब पर्याय को जानता है, तब ज्ञान में ऐसा विचार करता है कि मेरी क्रमबद्धपर्यायें मेरे द्रव्य में से प्रगट होती हैं। त्रिकाल द्रव्य ही एक के बाद एक पर्याय को द्रवित करता है । वह त्रिकाल द्रव्य, रागस्वरूप नहीं है; इसलिए जो राग हुआ है, वह भी मेरा स्वरूप नहीं है और मैं उसका कर्ता नहीं हूँ । इस प्रकार जिसने अपने ज्ञान में द्रव्यस्वभाव का निर्णय किया, उस जीव का ज्ञान अपने शुद्ध स्वभाव के सन्मुख होता है और उसको सम्यक् श्रद्धाज्ञान प्रगट होते हैं; वह पर से उदासीन हुआ है । राग का अकर्ता होकर, पर से तथा विकार से हटकर, उसकी बुद्धि ज्ञानस्वभाव में ही झुक गयी है; यह सम्यक् नियतिवाद का और सर्वज्ञ के निर्णय का
-
55
-