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सर्वज्ञ के निर्णय में अनन्त पुरुषार्थ
अनेकान्त है। तथा पर की पर्याय पर के द्रव्य से होती है, मैं उसकी पर्याय को नहीं करता' - इस प्रकार अनेकान्त है। 'जो होना होता है, वही होता है' - यह जानकर, अपने द्रव्य के सन्मुख होना चाहिए परन्तु 'जो होना होता है सो होता है इस प्रकार जो मात्र परसन्मुख देखता है, अपने द्रव्य की पर्याय जहाँ से आती है, उसकी ओर नहीं देखता; परलक्ष्य को छोड़कर स्वलक्ष्य नहीं करता, वह एकान्तवादी है।
प्रश्न - भगवान ने तो मोक्षमार्ग के पाँच समवाय कहे हैं और . आप मात्र पुरुषार्थ... पुरुषार्थ ही रटा करते हो तो फिर उसमें अन्य चार समवाय किस प्रकार आते हैं ?
उत्तर - जहाँ जीव सच्चा पुरुषार्थ करता है, वहाँ स्वयं अन्य चारों समवाय अवश्य होते हैं।
पाँच समवायों का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है -
1. मैं पर का कुछ करनेवाला नहीं हूँ, मैं तो ज्ञायक हूँ, मेरी पर्याय मेरे द्रव्य में से आती है; इस प्रकार स्वभावदृष्टि करके पर की दृष्टि को तोड़ना, वह पुरुषार्थ है। ___2. स्वभावदृष्टि का पुरुषार्थ करते हुए जो निर्मलदशा प्रगट होती है, वह स्वभाव में थी, वही प्रगट हुई, अर्थात् जो शुद्धता प्रगट होती है, वह स्वभाव है।
3. स्वभावदृष्टि के पुरुषार्थ से स्वभाव में से जो क्रमबद्धपर्याय उस समय प्रगट होनी थी, वही शुद्धपर्याय उस समय प्रगट हुई, वह नियति है। स्वभाव की दृष्टि के बल से स्वभाव में जो पर्याय प्रगट होने की शक्ति थी, वही पर्याय प्रगट हुई है। बस, स्वभाव में से जिस