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वस्तुविज्ञानसार
अथवा पुस्तक आ गई, इसलिए विकल्प उत्पन्न हुआ - ऐसा भी नहीं है। इसी प्रकार ज्ञान होना था, इसलिए पढ़ने का विकल्प उठा ऐसा भी नहीं है और पढ़ने का विकल्प उठा, इसलिए ज्ञान हुआ - ऐसा भी नहीं है। ज्ञान, पुस्तक और विकल्प तीनों ने अपनाअपना कार्य किया है।
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वीतरागी भेदविज्ञान यह बताता है कि प्रत्येक पदार्थ, प्रतिसमय अपने स्वतन्त्र उपादान से ही कार्य करता है । वस्तुस्वरूप ऐसा पराधीन नहीं है कि निमित्त आये तो उपादान का कार्य हो; उपादान का कार्य स्वतन्त्र अपनी ही सामर्थ्य से ही होता है।
सूर्य का उदय और छाया से धूप - दोनों की स्वतन्त्रता जिस समय परमाणु की अवस्था में छाया से धूप होने की योग्यता होती है, उसी समय धूप होती है और उस समय सूर्य इत्यादि निमित्तरूप हैं । यह बात मिथ्या है कि सूर्य का उदय हुआ, इसलिए छाया से धूप हो गयी अथवा छाया में से धूप अवस्था होनी थी, इसलिए सूर्य इत्यादि को आना पड़ा - यह बात भी मिथ्या है। सूर्य का उदय हुआ - यह उसकी उस समय की योग्यता है और जो परमाणु छाया से धूप के रूप में हुए हैं - यह उनकी उस समय की वैसी ही योग्यता है ।
केवलज्ञान और वज्रवृषभनाराचसंहनन की स्वतन्त्रता
जब केवलज्ञान होता है, तब वज्रवृषभनाराचसंहनन ही निमित्त होता है, अन्य संहनन नहीं होते, किन्तु ऐसा नहीं है कि वज्रवृषभ .- नाराचसंहनन निमित्तरूप है, इसलिए केवलज्ञान हुआ और ऐसा भी नहीं है कि केवलज्ञान के कारण परमाणुओं को वज्रवृषभ