Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 26
________________ घसंतविलास . [पध ४-११ [२] पतुतिय समरवि सिवरति हिव रति तणीय वसंत । पसरई दह दिलि परिमल निरमल थ्या दिसि अंत॥ ४ (२) आम्राकुरास्वादकपायकण्ठः पुंस्कोकिलोऽयं मधुरं चुकून । । । मनस्विनीमानविघातदक्षं तदेव जातं वचनं स्परस्य ॥ ५ . . . उपजातिः ।। [३] वसंत तणा गुण गहगह्या महाया सवि सहकार। त्रिभुवनि जयजयकार पिता रघु करहिं अपार ॥ ६ (४) रम्याणि तानि कदलीसदनानि कान्तं कान्तारभूमिपु लुठन्ति वरालकान्ताः । कान्ताः प्रसूनमयमण्डलमण्डपपु सिन्दूरपूरितसिचः पुरुषाश्वरन्ति ।। . मधुमाधवीछन्दः ।। वनि विरचिय कदलीहर दीहर मंडप माल। .. तलिया तोरण सुंदर बंदुरवाल विसाल || ८ (८) दिव्यस्त्रीणां सचरणलालारागाः । रागापाते निपतति पुष्पापीडाः । पीडाभाजः कुसुमचिताः साशंसं शंसन्त्यस्मिन् सुरतविशेष शय्याः ॥ ९.. वातोमिछन्दः ॥ [५] वलि विलसइ सवि कामुक यामुक हृद्य च रंगि। काम जिसा अलवेलर वेस रचइ वर अगि॥ १० (११) छुल्लंति देतरयणाई गदे तुसारे . ईसीसि चंदणरसंमि मणं कुणंति । इम्हि सुवंति घरमज्झिमसालियासु पायति पुंजियपडं मिहुणाई पिच्छ । वसंततिलकाछन्दः ।। 6. b. पिकारयु. 7. b. कांतारस्थानेषु for भूमिघु. 8. a. बिनि विरचिय. : 9: b. पुष्पापीडा; c. सासंश; 'd. शंशत्यस्मिन् ; वातोम्मीछंदः । . . 10. b. वेसरचरइ अंगि..

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