Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 43
________________ पंध १४-१८] वसंतविलास रक्तोत्पलप्रचितकुञ्चितकुञ्चिकाभैरुत्फुल्लकिंशुकलताकुसुमैरमीभिः। उद्घाट्य किंचिदपि मानमय कपाट कामो विवेश हृदि संपति दम्पतीनाम् ।। [८] पनि विरच्यां कदलीहर दोहर मंडपमाल । तलीया तोरण सुंदर वंदवालि विशाल ॥ १५ दीर्घा वन्दनमालिका विरचिता नेरिवेन्दीवरैः । पुष्पाणां प्रकरः स्मितेन रचितो नो कुन्दजात्यादिभिः । दत्तः स्वेदमुचा पयोधरभरेणार्यों न कुम्माम्भसा स्वैरेवावयवैः पियस्य विशतस्तन्व्या कृतं मङ्गलम् ।। १६ । ' . [९]. खेलन वावि सुखालीय जालीय गुखि विश्राम। । मृगमदपूरि कपूरिहिं पूरिहिं जल अभिराम ॥ १७ सुदतीजनमज्जनार्पितघुसृणैर्यत्र कपायिताशया। न निशाखिलयापि वापिका प्रससाद अहिलेव मानिनी ॥ १८ .. 14. a. ख and ग have प्रथित for प्रचित; ग. कुञ्चिकाभि: with रुत्फुल्ल... _in b, evidently a misreading of the scribe; ग. c. किंचिकपिमनमय etc. d. क यदि for हृदि; while ग, विवेशि and at the end - कामिनीनां दंपतीनां घ ___has this as श्लो. ५. ___15 a. फ. विनि विरच्या; ग. पनि वरच्या. b. ख. बंदुरवाल; ग, घ. तलीभा. प ... has this š., numbered 6. ... 16. ग has this verse with a number of scribal errors as usual. - क, ख . have also this verse. घ has the following verse, श्लो. ६: विलासवापीतटवीचिवादनात पिकालिंगीते शिखिलास्यलाघवात् । बनेऽपि तूर्यत्रिकमारराध तं क्व भोगमाप्नोति न भाग्यभाग्जनः ॥ . . 17. a. क, बालीय for जालीय; ख. गुउषि विश्रामु; ग, खेलई वावि सुखालोअ . बाली गुषि विश्राम; घ. गुष. b. क पूरिहि for, पूरिहिं; ख. जलि; ग. पूरया for पूरिहि; . घ. पूरिय for पूरिहिं. घ has this as ६० ७. 18. क, ख, ग, घ all have this verse. घ has this as श्लो. . .

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