Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 75
________________ पद्य १६१-१६५ ] वसंत विलास [८२] मकरंदि मातीय पदमिनि पदमिनी जिम नवनेह । अवसरि ले रसु मूंकइ चूकइ भमर न देहु ॥ १६१ .. अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजराजितम् । रमते नैव हंसस्य मानसं मानसं विना ॥ १६२ [८३] नितु नितु चरीअनइ महउओ गरूअओ गंध कुरंगि। __ भमर' भमी ममी रीणओ लोणओ सुरतसुरंगि ॥ १६३ पिवन् रसं यथाकामं भ्रमरः फुल्लपङ्कजे । अध्वसन् रससौरभ्यं नवं चुम्बति कुड्मलम् ।। १६४ [८४] भमर पलास करांबला आंबला आंबिली छांडित ___कुचभरि फलित कि तरुणी करणीअ सिउं रति मांडि ॥१६५ 161. a. क. मकरंद मातीम; नेह in the place of नेहु; ग. मकरंदि मालती पदुमिनी पदमिनी जिम नव नेह. घ does not possess this oG. St. b. क. लेव in the place of ले; रसु for रसु; देह for देहु; ग. अवसरि ले रस मूकइ ए चूकइ ए भमरला देह. 162. क, ख do not possess any Sk. St. घ possesses this Sk, St. 79, and 7 also possesses this St. after OG. St. 161. It is numbered in ग. 161. 163. क, ख do not possess this OG. St. a. ग. नितु र चरीअ नइ मरूउओ मरूउउ गंध कुरंगि; घ. नितु नितु चरचीय मरूउओ गरूअभी गंध कुरंगि. b. ग. रीणुउ for रीणओ; लीणउ; घ. भमर भमी भमी झीणो लीणओ तस रस रंगि. घ0G. St. 79. 164, 77 alone possesses this Sk. stanza. # and a do not possess this Sk. stanza at all; ख, however, possesses the following stanza : ‘पयोधिलक्ष्मीमुषि केलिपल्वले रिम्सुहंसीकलनादसादरम् । स तत्र चित्रं विचरन्तमन्तिके हिरण्मयं समबोधि नैषधः ॥ - 165 a: क. भमर पलांस करावला. आवुला आंबिली छाति; ख. कसाबुला in the place of करांबला; ग, भमर पलांस करांबला आंवला आंबला आंबली छांडिं. घ does not possess this OG. St. b. ख. कुचभर फलत कि तरुणीय करुणी स्यु रति मांडि; ग, . कुचभरि फलित कि तरुणी करणीअ शुं रति मांडि.

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