Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 58
________________ घसंतविलास [ प ८६-९१ - निपततापि न मन्दरभूभृता किमुदधौ शशलान्छन चूर्णितः । अपि मुनेर्जठराचिपि जीर्णतां वत गतोऽसि न पीतपयोनिधेः॥ ८६ । [४४] बहिनूए रहइ न मनमथ मन मथतउ दीहराति । अंग अनोपम शोषद पोषइ वइर अराति ॥ ८७ दुर्वाराः स्मरमार्गणाः प्रियतमो दूरे मनोऽत्युत्सुक गाढं प्रेम नवं वयोऽतिकठिनाः प्राणाः कुलं निर्मलम् । स्त्रीत्वं धैर्यविरोधि मन्मथमुहृत् कालः कृतान्तोऽक्षमी ‘नो सख्यश्चतुराः कथं नु विरहः सोढव्य इत्थं मया ॥ ८८ [४५] कहि सखि मुझ प्रीय वातडी रातडी किमइ न जाइ । दोहिलु मकरनिकेतनु चेतु नही मुझ ठाइ ॥ ८९ दिनो विनोदान्तरितोऽपि याति न त्वां विना याति सुगात्रि रात्रिः । उदन्तमन्तर्दयितस्य वाचं चिरं स्मरन्तीव मुहुर्मुमूर्छ ॥ ९० [४६] सखि मुझ फरकइ जांघडी तां घडी विडं लगइ आजु । दूख सवे हव वामिसु पामिसु प्रिय तणउं राजु ॥ ९१ 86. क, ख, ग have the same verse in common. ध has also the same verse. घ. Sk. St. No. 41. 87. a. क. दिहराति; रहि for रहइ; मथतु for मथतउ; स्व. बहिन रहइ न मनमथु मन मथतउ दीहराति; ग. वहिनूए न रहि मनमथ मन मथ दीह नइ राति.. b. ख. वयरू in the place of वइर; ग. शोपइ ए पोषए वयरणि राति; घ. अंगु अनोपम शोषए पोषए वयफ अरांति. घ. 0G. St. No. 42. 88. क, ख, ग, घ contain the same verse in common. घ. Sk. St. 42. 89. a. क. सहि for सखि; ख. प्रिय for प्रीय; ग. प्रीय मझ वातडी. b. स. दोहिलउ; मकरिनिकेतन; ग. दोहिलं मकरि सकेतन चिंत नही मझ संषि; घ. मकरनिकेतन चेत नहीं etc. घ. OG. St. No. 43. 90. क, ख, ग, घ all contain the same Sk. St. घ. Sk. St. No. 43. 91. a. क. फरकई; सखी for सखि, ग, सख मझ; विहि लगइ आज; घ. सखि मुझ फुरकए जांघडी तां घडी बिहु लगइ आज; b. क. हवअं; प्रीय तणूं; ख. हिव; घ. दूप सवे मझ इवि वामसि पामिस प्री तणुं राज; घ, दूष सवे हव वामि पामिसु प्रीय सिदं राज. घ..OG. St No. 44.

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