Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 63
________________ पच १९१०-११५] . वसंतविलास [६] मुख आगलि तूं मलिन रे नलिन जई जलि नाहि । . दंतह वीज दिखाडि म दाडिम तूं जि तमाहि ॥ १११ __ सुषमाविषये परीक्षणे निखिलं पद्ममभाजि तन्मुखात् ।। अधुनापि न भङ्गलक्षणं सलिलोन्मजनमुज्झति स्फुटस् ।। .११२ [१७] मणिमय कुंडल कानि रे वानि वसई हरियाल । पंचमु आलवई कठि रे कंठि मुत्ताहलहार ।। केशा केकिकलापविभ्रमभृतः कौँ चलत्कुण्डली वक्त्रं निर्जितचन्द्रविम्बमधरो बालप्रवालारुणः । चक्षुः पर्वविकासि पङ्कजदलं कुम्भामिरामौ कुचा__ वस्याः संपति वर्तते मृगदृशः किं किं न चेतोहरम् ॥ ११४ [५८] वीणि भणउं कि भुजंगमु जंगमु मदन कृपाण । कि रि विषमायुधि प्रकटीय भृकुटीय धणुह समाण ॥११५ 111. a. क. तुं for तू ; नलि for जलि; ख. begins with अहो। मुख; नहा; ग. तुं अमलि रे नलिन जई जल नाहि । घ. तूं अलिन रे मलिन जई जलि नाहि. b. क. तु जि तिमाहि; a reader has corrected जि तमाहि into जि तिमाहि. स. तु जि तमाहिग. दंतह पीज दपाडि म दाडिम तुं जि तमाहि । घ. has the same as the printed text. 9, OG. St. 58. Note that e. OG. St. 55 to 67 begin with अहो except oG. St. 60, 61, 65. .. 112. क, ख, ग and घ. Sk. St. 54 have the same St. in common. ..113. a, क. वानि वसई हिरीयाल; ख. पानि हसई हरियाल; it begins with महो। मणिमय; ग. मणिमय कुल कानि रे वानि रे हसइ हरीयाल; घ. वानि हसइं हरीयाल; b. क. मुकाफलहार; स. पंचमु आलति कठि रे कंठि मुत्ताहलमाल; ग. पंचम आलवई कंठि रे कठि मुकाफलहार; घ. पंचम आलवइ कठि रे कंठि मुत्ताउलिमाल. घ. Od. St. No. 59 .. 114. क, ख, ग have this verse in common along with घ. Sk. Ot. No. 60. c. ख. सूर्य विकासि; ग, पूर्वविकाशि; घ. c चक्षुनिर्जितफुलपङ्कजदलं. .ख. d. यस्याः . घ. Sk St. No. 59 however is दोलागतागतविनोदरसेन etc. 115. a. क. वीणि भणूं कि भुजंगम जंगम मदन कृपाणु; ख. अहो । वीणि भणउं कि भुजंगमु जंगमु मदनकृपाण; ग. वीणि भणूं कि भुजंगम जंगम दहनकृपाण; घ. वीणि भगूं कि भुजगम जंगम यमुनतरंग; b. क. करि विषमायुध प्रकटीअ भृकुटीअ धणह समान; ग, करि विषमायुध प्रगटीअ भृगटीअ धणुह समान; घ. contains altogether a different line, viz. राषढी जडीअ कि माणिकि जाणि कि फणिमणि चंग, which is printed _text 00. St, 59 b. घ. OG. St. 53 = printed text. OG. St. 58: ::

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