Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 64
________________ वसंतविलास . [ पथ ११६-११९ गतिर्वेणी च नागेन रूपमूरू च रम्भया । . प्रवालैः पाणिरोष्ठौ च तस्यास्तुल्यत्वमागतम् ॥ ११६ - [१९] सीइंथु सीदूरिहिं पूरीउ पूरीउ सोताय चंग। राखडी जडीय कि माणिकि जाणि कि फणिमणि चंग॥११७ अघापि तद् विकसिताम्बुजमध्यगौरं. गोरोचनातिलकमण्डितमध्यदेशम् । . ... इंपन्मदालसविधूर्णितनेत्रपझं कान्तामुखं पथि मया सह गच्छतीव ॥ ... ११८ [६०] तीहं सुखि मुनि मन सालए चालए रथ कि अनंगु। सूरसमान कि कुंडल मंडल कियां रथ अंगु॥ ११९ 116. क, ख, ग have the same verse; while घ. Sk. St. 53 is पंचाननं परिभवत्युदरेण वेणीदण्डेन. etc., which is = printed text St. 128.. b. क. तस्याश्च तुल्यतां गतो; ग. मोष्ठपाणी प्रवालेन तस्यास्तुल्यत्वमायुयुः। The text is corrupt. . 117. a. क. सीस सीरिहिं पूरीउ प्रीयु मोतीअ चंगु; ख.. सीसु सौंदुरि पूरिय पूरिय मोतीय चंगु; ग. सीथुई सोदूरिहिं पूरिअ पूरिअ मोतीअ चंग; घ, सइथउ भरीय सिंदूरीय पूरीय मोतीय चंग. b. क. जमीअ; जांणि कि; चंगु; ख. चंगु; ग. रापढी जडीभ . कि माणिकि जाणि कि फणिमणि चंग. घ. has altogether a different line : हाथि भडागर पान रे वान रे नव नवरंग; while for this OG. St. 59, see under readingnote-115. This is a OG St. 56 . 118.८, स contain अद्यापि तदूविकसिताम्युज .etc. c. क. नेत्रपात्रं, खः नेत्रपत्रं; while ग. contains the following verse: तीदूरपूराहणतो दधाना सीमन्तरेखा युवतेविरेजे । - तत्केशपाशाद्भुतमेघमालामध्ये स्फुरन्तीह तडिल्लतेव ॥ [ The Ms. ग. reads.a. सिमंतिरेषा ] घ. contains the following verse as घ. Sk. St. 56:-. त्वामालि. याचति भुजालतादलानि कृत्वा मुखे क्रमुकफालिमसों भुजाः । . ब्रह्माण्डलोकविजयोद्यतपुष्पकाण्डदोर्दण्डताम्डवितकीर्तिविपाण्डराणि ॥ 119. a. क. तीहई मुखि मुनिजन चालई चालई रथु कि भनंगु; ग. तेह मुखि मनि मन चालई ए सालए विरहणी अंग घ. तिहं मुखि मुनि मन चालई चालई स्थ कि अनंग, b. क, सूरसमानि; किया; वर अंग: in the place of रथ अंग; ख रथ अंग; ग. मंडल किया पर चंग; घ, सूरसमान कि कुंटल कुंडल किया वि रथंग. This is घ.00. St. No

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