Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 65
________________ .... पप १२०-१२२ ] वसंतविलास . .४१ श्रोणीचारुरथं पयोधरहयं भ्रूकार्मुकं दृक्शरं पीनोरुद्विपमगरागकवचं ताम्राघरोष्ठध्वजम् । काञ्चीनपुरशङ्खदुन्दुभिरवाहक्काप्रणादाकुलं कामिन्या नखदन्तशस्त्रमतुलं प्राप्नोतु युद्धं भवान् ॥ १२० [३१] भमहि कि मनमथ धणुहोय गुण हीय वरतणु हार । वाण कि नयण रे मोहइ सोहइ सयल संसार ॥ १२१ धनुपी रतिपञ्चवाणयोरुदिते विश्वजयाय तर्द्धवौ। नलिके न तदुचनासिके त्वयि नालीकविमुक्तकामयोः ॥ १२२ 66. It may be noted as regards घ Ms. that the घ Ms. has after Sk. St. 53. the following additional stanzas : -ओढणि रेटइ पहुलीअ कुली अडागर पान । ___. तिलकुमुमोपम नासिक वासि कपूरसमान ॥५४॥ - लो:-तरुणी चैपा दीपितफामा विकसितजातीपुष्पसुगन्धिः । .. उन्नतपीनपयोधरभारा कि न वशीकुरुते भुवि रामा ॥५४॥ २०-रोमाउली उतरतीय निरतीय काजलवानि । जीपए उदरि पंचानन आन नहीं उपमान ॥५५॥ - लो०-लावण्यामृतसंपूर्णान्नाभिकूपात्प्रवर्तिता । रेजे कुल्येव रोमाली सेक्तुं यौवनकाननम् ॥५५॥ The above stanzas are not traceable in क. स. ग. group of Mss. __120. क, ख, ग have the same verse in common; while घ Sk. St. No. 60 is $21: Blaa!q etc. which is equal to the printed text St. 114. क. C. हित्या for हक्का. ग. a. दृक्शराः c. हिक्का for हक्का. 121. a. ख. भमह for भमहि; ग. भमहि मनमथ धणणीही गुण हअडइ वरहार. घ. भमहि कि मनमथ धणुहीय गुणहीय....... The rest of the line is obviously .not read by the घ scribe in the original from which he copied. b. स. मोह सोहई सयल संसारु; ग. वाण कि नयणडे सोहर ए मोहए सयलु संसार. घ. has entirely a different line. वाण कि नयण कडांप रे नाकु रची नलीयार घ. OG. St. 61. . 122. क, ख, ग have the printed stanza in common; b. क. नाडीक for नालीक, while u has the following stanza : घ. Sk. St. 61. तालीदलं कांचनकर्णपूरे विभ्रामयंती सुतरां कराभ्याम् । रराज कर्णान्तवसप्पि चक्षुः शाणे दधानेव कटाक्षबाणान् ॥ . . [ घ. b. कटाक्षि for कटाक्ष; श्याणे for शाणे ]

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