Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 68
________________ वसंतविलाल . पंद्य १३३-१३८ [६७) नाभि गंभीर सरोदर उदरि रे त्रिवलि तरंग । जघन समेखल पीवर चीवर पहिरणि चंग ॥ १३३ उदरं नतमध्यपृष्ठतास्फुटदगुष्ठपदेन मुष्टिना। . . - चतुरङ्गुलमध्यनिर्गतत्रिदलीभाजि कृतं दमस्वमुः ॥ १३४ [१८] निरुपमपणई विधि तां घडी जांघडी उपम न जाइ। . करि कंकण पाइ नेउर केउर बांहडीआइ ॥ .. .. १३५ वृत्तानुपूर्वे च न चातिदीर्घे जके शुभे सृष्टवतस्तदीये । शेषाङ्गनिर्माणविधौ विधातुर्लावण्य उत्पाय इवास यत्नः ॥ १३६ [६९] अलविहिं लोचन भींचइं हींचई दोलिहिं एकि। एकि हणई प्रियु कमलि रे रमल करइंजलि एकि ॥१३७ [७०] एकि दिई सहि लालीय तालीय छदिहिं रास । एकि दिइं उपालंभ रे वालंभ रहिं सविलाल ॥ . १३८ । 133. a. क तुरंग for तरंग; ख उरवरि for उदरि रे, ग. उदरि रित्रिवलि तुरंग; घ...सरोवरि उरवरि त्रिवलि तरंग. b क. पहिणि चंगु: ख. पहिरिणि चंग. and ग. पहिरणि चंग घ. 0G. St. 67. ___134- क, ख ग and also घ. Sk. St. 67, have the same stanza . in common. 135. a. क. निरुमपणइ विधि ता घडी जा घडी ख. निरुपमपणइं विधि तां घडी जांघडी उपम न जाइ; ग. निरूमपणई विधिइ तां घड़ी जांघडी उपम जाइ; घ. विधि तो. b. ग. करि । कंकण पाए नेउरी केउर बांहडीआइ; घ. केयुर वाहडीयाई. ध 0G. St. No: 68. . 136. क, ख, ग have the same stanza in common; while .... .. has as Sk. St. 68 = printed text St. 116. . . . . . ... - 137. a क. मीचइ हीचइ दोलिहिहं एकि; ख. अलविहिं...दोलिहि; ग. अलवि लोचन . मीचए हीचई दोहिलई काइ; घ. अलविहिं लोचन मींचए हींचए दोलहं एकि. b. क. हण; . कमलि रि जमलि काइ, ख. जलकेलि for जलि एकि; ग. एक हणई कमाल रे रमलि करई जलि एकि; घ. हणइ करि कमलि रे. घ. 0G. St. No. 69. . 138. This is an OG. stanza. There is no Sk. stanza in between. 137 and 138 in क, ख, ग Ms. घ has however the · : following Pk. St. 69; श्लो. गायन्तगोवयवहूपदपेंखिदासु दोलासु विभ्रमवदीसु नियदिछी । ... जं जादि खंजिदतुरंगरहो दिणेसो तेण च हाइ दिवहा भइदीहदीहा ॥६॥ :

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